सबसे पहला जो आस्पेक्ट है पैगंबरवाद का, वो पूरी की पूरीह्यूमैनिटी को दो कैटागोरिस मैं डिवाइड करता है। वो उनकीटर्मिनोलॉजी अलग हो सकती है, लेकिन पूरी ह्यूमैनिटी कोडिवाइड जरूर करता है। ये वैसे तो हर आइडियोलॉजी मेंआता है क्युकी कोई भी विचारधारा आप लेंगे तो उसमेअच्छे और बुरे की कांसेप्ट हमेशा प्रेसेंट होती है। तो जो तोनैचुरलैस्टिक हैं, प्राकर्तिक हैं, उनके अंदर ये जो डिवीज़न हैवो किस बेसिस पे की जाती है ? वो उसका जो बैस है वोहै उसके एथिक्स कैसे हैं ? या उसका बिहैवियर कैसा है ?इसका सबसे कॉमन जो एक्साम्पल आप ले सकते है वो हैराम और रावण का। राम और रावण एक ही भगवान कीपूजा करते है दोनों शिव के भक्त हैं, तो यहाँ पर वोकिसको पूज रहे हैं वो उनको अच्छा या बुरा नहीं बनाता।उनका जो बिहैवियर है उनके जो एथिक्स हैं या उनके जोएक्शनस है वो उनको अच्छा या बुरा बनाते हैं। अगर कोईबिहैवियर बुरा कर रहा है उसको जो व्यावहार है वो गलतलगता है
जो एक्सेप्टेड नौरमस है उसके अकॉर्डिंग नहीं लगता तो हम उसको बुरे की कैटागोरी मैं डालते हैं। और इसलिए रावण को आज भी जब हम रामलीला मनाते हैं या दशहरा मनाते हैं तो वहाँ पर हम उसको बुराई के प्रतीक के रूप में देखते है। जो पैगम्बरवाद है उसके अंदर जो ये केटेगोरीजेसन है वो थोड़ी सी अलग है। इसमें ये जो केटेगोरीजेसन है वो फैद पे या रैलीजनस के बैसिस पे की जाती है। के अगर तो वो मेरे फैद वाला है, वो मेरे रिलिजन वाला है, मेरे मजहब वाला है, तो तो वो अच्छा है, अदरवाइज़ वो बुरा है। उसको रिजेक्ट किया जा सकता है जिसे आजकल हम अदराइजैशन कहते हैं के ‘ही इस डी अदर’। अब ये अदर वाली कांसेप्ट, जो प्राकृतिक रिलिजनस है उनके अंदर नहीं है। के वो किसलिए बुरा है के वो एक घर मैं पैदा हो गया या एक रिलिजन मैं पैदा हो गया इसलिए बुरा नहीं माना जाता ‘एस फार एस नेचुरल थौट प्रोसेस इस कंसर्नड’। लेकिन जब आप प्रोफेटिक रेलिजनस पे आते हैं, वहाँ पर ये कटेगराइजेशन फैद बेसड कह सकते है या रिलिजन बेसड कह सकते है। यहाँ पर जो कटेगराइजेशन है वो है अगर आप करिशचनीज़म देखेंगे, तो बिलीवर वरसिज फिडेलिटी हो जाती है।
इस्लाम देखेंगे तो, मोमिन वेर्सिस क़ाफ़िर हो जाती है। ये जो डिवीज़न की रही है वो एथिक्स से लिंक्ड नहीं है। इसका बेस्ट एक्साम्पल हम ले सकते है गांधी जी के एक्साम्पल से। वैसे लोगों की अलग अलग राय है, कुछ लोग गांधी को अच्छा बोलते हैं, कुछ बुरा बोलते है। उस डिबेट पे नहीं जाएगे। लेकिन वर्ल्डओवर ये माना जाता हैकि नॉन वोइलेंस की बात करते थे तो बहोत अच्छे आदमी थे ‘ही वाज आ वेरी गुड़ ह्यूमन बीइंग’। लेकिन इन दोनों रिलिजनस ने उनको कैसे ट्रीट किया है, वो हमे बहोत अच्छा, बहोत क्लियर एक्साम्पल देता है कि किस तरह से ये डिस्क्रिमिनेशन या डिफरेंस क्रिएट किया जाता है। 2012मैं एक चर्च है अमेरिका मैं, यहाँ पर भी उसके लोग प्रेजेंट हैं, ‘डी चर्च ऑफ़ जेसिस एंड द लैटर डे सेंटस’ जिससे शार्ट मैं ‘मोर्मोंस’ भी कहा जाता है। उन्होंने 2012 में महात्मा गाँधी को बेपटाइज़ किया।
बेपटाइज़ करने का मतलाब है की उनको क्रिशचन बनाया, क्रिस्टैनिटी में कन्वर्ट किया। इनअबशेंशिया, उनके मरने के बाद इसका रिज़न क्या है ? के लोग पछुते है, के आप बोलते हो के अच्छे लोग है वो हेवेन मै जाएँगे, जो बुरे लोग हैं वो हैल में जाएँगे। तो गांधी जी के बारे में आपका क्या कहना है ? तो जनरली, जो क्रिशचन है वो एक कार्नर में फ़ंस जाते थे कि हम इसका क्या आंसर दें? क्यूकि जो उनकी क्लासिफिकेशन है, उसके अकॉर्डिंग जो क्रिशचन नहीं है, जिसने क्राइस्ट को एक्सेप्ट नहीं किया है ‘एज़ हिज/हर सेवीयर’ वो जितना मर्ज़ी अच्छा हो, कर्म जितने मर्ज़ी अच्छे हो, वो हेवन में नहीं जा सकता, वो सिर्फ हेल में जा सकता है। तो गांधीजी को उन्होंने बचाना था, इसलिए उनको बेपटाइज़ किया गया। अब हम लोगों के लिए हँसी की बात हो सकती है लेकिन उनके लिए हँसी की बात नहीं है, उनके लिए बड़ा नेचुरल सा प्रोसेस है। के अगर किसी को बचना है तो उनके पास एक ही रास्ता है, वो बलाइंड फैद है कि ‘जीसस इस द सेवियर’।
दूसरा एक्साम्पल हमे हमारे देश की हिस्ट्री में मिल जाता है। जब हम अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे थे, तो एक खिलाफत मूवमेंट चली थी यहाँ पर। जिसमे दो मुसलमान भाई थे,जिनको गांधी जी ने अपने साथ मिलाके वो एजिटेशन करने की ट्राई की थी। तो ये एजिटेशन 1919-20 में हुआ था। लेकिन 1924 में ही यही दो जो भाई थे, जो मौलाना थे,उनका कहना था की हमारी नज़रो में जो गांधी है वो सबसे गिरे हुए मुसलमान से भी गिरा हुआ आदमी है क्योंकि हमारा रिलिजन ये कहता है, हमारा मजहब ये कहता है। तो ये फर्स्ट मेजर डिफरेंस है, जो प्रॉफेटिक रिलिजनस है और जो नेचुरल रिलीजंस है। उनमें जो डिफ्रेंशिएशन है वो एक तरफ मजहब के आधार पे और तरफ दूसरी एथीकस के आधार पे की जाती है।