वैदिक विश्वदृष्टि पर बातचीत का उद्देश्य इस सत्र के माध्यम से वेदों के बारे में एक परिचयात्मक समझ प्रदान करना है, फिर इसके बाद निकट भविष्य में शायद अधिक विस्तृत सत्र आयोजित होंगे।
आगामी चर्चा निम्न विन्दुओं पर होगी: –
1. वेदांगों और मीमांसा के साथ वेद शाखा साहित्य श्रोतों के आधार पर ‘ हिन्दू होने की पहचान क्या है?’ विषय के बारे में विचार। संभवतः इसका विकास और वर्तमान में आकर-प्रकार स्मृति ग्रंथों के माध्यम से हुआ।
2. देवी / देव कौन हैं? परिभाषा के अनुसार, देवता ‘मानव’ की तुलना में उदात्त या ‘उच्च’ प्रजाति है। ‘प्रजाति’ क्या है? जीव के अवतरण के लिए यह ‘एक प्रकार का रूप’ है। जीव ’क्या है? जीव एक चेतनाधारी इकाई है जो ‘चित्त नामक पहचान के तंत्र’ से जुड़े हैं जो संस्कार या आत्म-छवि की स्थिति की जानकारी संग्रह करता है। तो वैदिक विश्व-दृष्टि में देव / देवी मानव अवस्था से उच्चतर जीव हैं। उन्हें ‘मानव रूप’ से अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
3. देवता कौन है? पुनः परिभाषा अनुसार, ‘ मंत्र माध्यम से जिसे भी आह्वान किया जाता है वह देवता है’। यह ‘भौतिक निर्जीव वस्तुओं’ से लेकर ‘विशुद्ध वैचारिक इकाई’ तक कुछ भी हो सकता है। अतः, यह मंत्र:, मनुष्येभ्यो हन्त, ओषधीवनस्पतिभ्य: स्वाहा, अग्नये स्वाहा, प्रजापतये स्वाहा जिस इकाई का आह्वान कर रहे हैं वह देवता है। ग्रावभ्य: स्वाहा जैसे मंत्र “सोमरस मथने वाले पत्थर” को देव की संज्ञा देते हैं।
4. उपनिषद क्या हैं और अद्वैत के गहरे रहस्यवादी विचारों ने उपनिषदों में कैसे प्रवेश पाया? उदाहरण के लिए मांडूक्य उपनिषद ‘देव’, ‘भगवान’, ‘ईश्वर’ आदि शब्दों को छोड़ मात्र चेतना के बारे में चर्चा करते हैं।
वक्ता-परिचय: –

मृगेंद्र विनोद आनंदवन भटका समुदाय, वाराणसी के संस्थापक व अध्यक्ष हैं। उन्होंने कम्प्यूटर साइंस में एम. एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा से 1986 ई. में बी.ई. किया है। उन्होंने स्वयं को आध्यात्मिक राह पर समर्पित करने से पहले टी.आई.एफ.आर और डी.आर.डी.ओ. में कुछ समय तक काम किया। वे वेद शास्त्र का अध्ययन कर रहे हैं। आगे…