धर्मो रक्षति रक्षितः। Dharmo Raksati Raksitah.

Dharma protects those who protect it.

– Veda Vyas, Mahabharat

पैगंबरवाद का पूर्व पक्ष — नीरज अत्रि द्वारा एक व्याख्यान


पैगम्बरवादी मज़हबों के आने से पहले विश्व की विभिन्न सभ्यताओं का संक्षिप्त परिचय देने के पश्चात पैगम्बरवादी विचारधाराओं की तुलना भारतीय विचारधाराओं से की जाएगी। तुलनात्मक अध्ययन के मुख्य बिंदु हैं:-

— मानवजाति का विभाजन (मोमिन बनाम काफ़िर).
— समय का विभाजन (जाहिलयत बनाम नूर).
— पुनर्जन्म के प्रति विचार.
— महिलाओं की स्थिति.
— प्रकृति से सम्बन्ध.
— मोक्ष बनाम जन्नत.


Transcript: –

जो पैगम्बरवाद है, उसके अंदर, अगर आप रिजेक्ट करते हैं तो आप ब्लासफेमी करते हैं। अब ब्लासफेमी… एक ऐसा वोर्ड है, जो हमें हिन्दी में या संस्कृत में कभी उसका पैरलल देखने को नहीं मिलता, क्योंकि यहां पर क्वेश्चन किया जा सकता है और क्वेश्चन के बैसीस पे ही सारा चलता है। जो पैगम्बरवाद है, वो कंट्रोल वाले सिस्टम को प्रोमोट करता है। औन द अदर हैंड, जो नेचुरलिस्टिक हैं, वो एक ओपन मार्केट को प्रोमोट करते हैं। कोई भी आदमी, अगर आपको कहता है कि हम अदर गोडस को वरशिप करते हैं, तो उसके साथ करना क्या है? “देट प्रॉफिट और ड्रिमर मसट बी पुट टु डेथ” जो आपको सिर्फ इतना कहता ही है कि आओ हम किसी और गोड की पूजा करते हैं, उसको आपने जान से मार देना है। दिस इस द काइंड ऑफ डिफ्रेंससेशन, जो नेचुरल और प्रॉफेटीक रीलिजनस के अंदर आती है।

जब हम पुर्वपक्ष की बात करते हैं, तो यह हमारी वैसे तो सदियों पुरानी परंपरा है जिसमें कोई भी विचारधारा जब प्रचलित होती है या वो डोमिनेंट हो जाती है तो हम उसका अध्ययन करते हैं। और फिर उसमें अगर कोई तर्रूटी है तो निकालने का प्रयास करते हैं और यदि नहीं है तो उसको अपनाने का प्रयास करते हैं। और इसमें हम किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर नहीं करते, हम पहले से अपना कोई माइंडसेट नहीं बनाते हैं, की इसकी हमें निंदा ही करनी है, हमने इसकी परेज़ ही करनी है।

तो मैं भी, आज यहाँ पर जो आपके सामने प्रस्तुत करने वाला हूं अपनी वार्ता, उसमें मैं बिना किसी पूर्वाग्रह के चलूंगा। अब इसमें जब हम पैगम्बरवाद की बात करते हैं तो पैगम्बरवाद अगर हम पूरी हिस्टरी में देखे तो बड़ा रिसेन्ट सा प्रोसेस है। बहोत बाद में आया है पैगम्बरवाद। पिछले 2000 साल में, जब से पैगंबरवाद शुरू हुआ है, उससे पहले से हम चलेंगे, के पैगम्बरवाद आने से पहले या जिन्हें हम प्रोफेटिक या अब्राह्मिक रिलिजनस कहते हैं उनके आने से पहले हम संसार में क्या देखते थे।
तो अगर आप आज से 2000 साल पीछे चले जाए तो आपको हमारे इस प्लेनेट में क्या दिखाई देता है कि कॉन्टिनेंट्स तो अलग-अलग है, लेकिन सब पे सिविलाइजेशनस है जो फल फूल रही है।
मैं सटार्ट करता हूँ अमेरिकन साइड से, अमेरिका में आप देखेंगे, तो जो मिडल अमेरिकन पौरशन है वहां पर हमें माया सिविलाइजेशन देखने को मिलती है। फिर अगर आप साउदरन अमेरिका में आते हैं वहां पर इन्का सिविलाइजेशन देखने को मिलती है। नौरथ मैं देखेंगे तो एज़टेक सिविलाइजेशन मिलती है जिसके रिमैंनस आज भी अवेलेबल हैं।

युरोप मैं, जिसे हम रोमन सिविलाइजेशन कहते हैं वह मिलती है। फिर यूरोप में ही जिसे हम ग्रीक सिविलाइजेशन कहते हैं। अफ्रीका में, स्पेशली नॉर्थ अफ्रीका में, इजि़पट सिविलाइजेशन है, एशिया में आते हैं तो प्रशियन सिविलाइजेशन, ये हम जानते हैं कि इंडिया में अगर आते हैं तो वैदिक या हिंदू सिविलाइजेशन भी हम इसको कह सकते हैं। आगे चले तो, चाइनिज़ या ताऔस्टिक सिविलाइजेशन जिसे कनभयुशन भी कहते हैं।

अब यह सारी सिविलाइजेशंस, जिनको हम 2000 साल पहले दुनिया में देखते थे, आज इनमें बहुत सारी ऐसी हैं जो हमें दिखाई नहीं देती। तो इनमें कुछ चीजें हैं जो हमे कॉमन देखने को मिलती हैं, जो आर्कयोलोजिसट या जो हिस्ट्री सट्डी करते हैं वो इनके बारे में हमें बताते हैं। ये जो अमेरिकन सिविलाइजेशन है, उसका एक सट्रकचर है जो आपको यहाँ दिखा रहा हूं।

इसमें हर साइड पे 91 सटैयरस हैं। और अगर आप चारों साइडस का मिला लेते है तो 364 टोटल बनेगा। और टोप का जो पलेटफोर्म है उसे मिला लें तो 365 आती है जो एक दिन (वर्ष!) को सिमबलाईज़ करती है। अपने आप में ये बडा़ सिमपल लग सकता है, और ये सटर्कचर जो है इसको सुर्य या सन वर्शीप के लिए युज़ किया जाता था। इसमे खास बात क्या है कि जब अगर हम इसको हमारे देश में कमपेरिज़न करते हैं तो आज भी यहाँ हम सुर्य मंदिर देखते हैं। आर्कीटेकचरली बहोत ज्यादा सिमिलेरीटीस नही दिखती हमें इनमें लेकिन, ये जो अमेरिकन सटर्कचर दिखाई देता है इसकी एक खासीयत है, जब हम सोलेस्टाइस देखते हैं…. जब हम इकविनौकसिस की बात करते हैं, वो बैशक समर..अ.. वरनल इकविनौकसिस है या ऑटम इकविनौकसिस है, जिसे हम बोलते हैं कि दिन और रात बराबर होते है।तो 21st  मार्च और 21st सेपटैम्बर, इन दो दिनो को हम ये मानते है कि दिन और रात बराबर होते हैं। उस दिन अगर हम इसे ऑब्ज़र्व करते हैं, तो ऐसा लग रहा है जैसे एक सरपैंट है चल के आ रहा है और निचे देखेंगे तो आपको सरपैंट का हेड दिखाई देता है।अब आप ईमैजिन करके दैखिये कि आज से 3000 साल पहले ये सटर्कचर बनाया गया था। इसके लिए फिजिकस की, मैथैमैटिकस की, एसट्रोनोमी की बहोत अच्छी ईनफरमैशन होनी चाहिए, बहोत अच्छी नोलेज़ होनी चाहीए, और आरकीटेकचर की तब इसे बनाया जा सकता है।

ये मैं इसलिए शेयर कर रहा हूँ कि हमारे माइंड में एक कांसेपट आता है कि साइंस तो अभी पिछले 300-400 साल मैं बनी है। उससे पहले तो लोग जंगली होते थे या उनके पास इनफोरमेशन या उनके पास नोलेज़ जो थी वो बहोत कम होती थी। तो इतनी सोफेसटीकेटीड साइंस पहले से अवेलेबल थीं और ये वो सिविलाइज़ेशनस हैं जो आज एगजिसट नहीं करती हैं। दूसरा एक्साम्पल मैं ले रहा हूँ ‘स्टोन हेनजिस’ का जो हमे इंग्लैंड मैं देखने को मिलता है स्ट्रक्चर। फिर से एक बहोत सूंदर स्ट्रक्चर है। इसमें 40 टन से ज्यादा भार के पत्थर है, जिनको काफी हाइट पे रखा गया है। हमे नहीं पता के उन्होंने किस तरह से, क्या टेक्नोलॉजी यूज़ की थी। लेकिन सिर्फ भार के कारण इनको उठा के रखा था वो इसमें मेजर आस्पेक्ट नहीं है। मेजर इसमें फिर से है कि इसको फिर से एस्ट्रोनोमी से कैसे लिंक करते है। फिर से जब हम अगर सबसे बड़े दिन की बात करे, जो 21, 22 जून को हम बोलते हैं। उस दिन यहाँ पर एक खास चिज़ देखने को मिलती है। ये मुझे नेट से मिला है, मैंने नहीं बनाया इसे, के उस दिन जो सबसे बड़ा दिन है, उस दिन जो पहली सन की रे निकलती है वो इस स्ट्रक्चर में से पास होके एक पर्टिकुलर पत्थर पे जा के गिरती है। ये फिर से आपको इनफार्मेशन देता है कि ये लोग जो थे, ये प्रिमिटिव नहीं थे। इनके पास साइंस की, फिजिक्स की, मैथस की, ट्रिग्नोमैट्री की, आर्किटेक्चर की बहोत एडवांस नौलेज़ थी। ये मैं जितनी सिविलाइज़ेशनस की बात कर रहा हूँ ये इनमें कॉमन फीचर है।

अब देखिये यहाँ पर तीन अलग अलग कॉन्टिनेंट्स है। इंडोनेशिया में, मेक्सिको में, इजिप्ट मैं। ऑलमोस्ट आइडेंटिकल  स्ट्रक्चर देखने को मिल रहे है। जो एक और मिथ को तोड़ने मैं हेल्प करता है कि पहले लोग ट्रैवल नहीं करते थ या ट्रैवल करते थे तो बहोत दूर नहीं जाते थे, और अगर जाते थे तो भी वर्ल्ड आपस में कनेक्टेड नहीं था। ये एक इमेज इन सारे मिथस को तोड़ने मैं हमारी हेल्प करती है कि देयर वाज़ क्नेकटीवीटी। लोग कनेक्टेड भी थे और आपस मैं टेक्नोलॉजी का एक्सचेंज भी करते थे। नेक्स्ट फीचर जो इन सिविलाइज़ेशन का है उसमें दो चीजें आती हैं। एक तो, ये जितने सिविलाइज़ेशनस हैं उनमे जो नेचर के एलिमेंट्स हैं उनके लिए रेस्पेक्ट है। वो आपको सन वरशिप ले सकते हैं, मून वरशिप ले सकते हैं, नदियों की रेवरेन्स है। और… दूसरा जो इसका एलिमेंट है कि यहाँ पर देवियों को पूजा जाता है। सारी सिविलाइज़ेशनस में ये कॉमन फीचर था के देवीयों को पूजा जाता है और जो नेचर के एलिमेंटस है उनकी रेस्पेक्ट की जाती है। हम उसको पूजना भी कह सकते है, लेकिन मैं यहाँ पर स्पेशली रेस्पेक्ट वर्ड युज़ कर रहा हूँ। आज जहाँ पर क्रेस्चेनिटी का मैंन गढ़ है…रोम, वहां पर भी हमें मून गॉडेस है जो देखने को मिलती है।

सारे के सारे फिचरस आपको इन सिवीलाइजेशनस में कॉमन मिलेंगे कि सब जगह पर देवियों या महिलाओं की रेस्पेक्ट की जाती है। ये माया सिविलाइज़ेशन है, वहां की जो देवी है जो फर्टिलिटी के लिए भी काम करती है, मून गॉडेस भी है, सन गॉडेस भी है। चीन मैं, आज हम उसे कम्युनिज्म का गढ़ कहते है। लेकिन यहाँ पर भी मून गॉडेस की पूजा की जाती थी। जब ये सिविलाइज़ेशन अपनी पीक पर प्रेजेंट थी। जापान मैं, सन वरशिप देखने को मिलती है और फिर वहाँ पर भी जो एमबोडीमेंट है वो देवी के रूप में है, महिलाओं के रूप में है।

ये हम सब जानते है लेकिन जो हम नहीं जानते कि ऐसा ही स्ट्रक्चर हमें साउथ अमेरिका में भी देखने को मिलता है। तो हम यहाँ पर पवनपुत्र कहते हैं। वहां पर भी इसको ‘गॉड ऑफ़ विंड’ कहा जाता है। ये छोटी-छोटी सी चिज़े हमें तीन फैक्टरस पर फोकस करने मैं हेल्प करती है। 1) हाईली एडवांस टेक्नोलॉजी 2) जो नैचर के एलिमेंटेन्ट्स हैं उनके लिए रेस्पेक्ट 3) वॉमैन एम्पावरमेंट उसको हम कह सकते हैं या देवियों कि पूजा की जाती थी वहां पर। अब आज अनफोरचुनेटली सिचुएशन क्या है कि जितनी सिविलाइज़ेशनस थीं ये हमें देखने को नही मिलतीं। सिर्फ एक है जो थोड़ी सी बची हुई है, और वो बची हुई है इसीलिए शायद आज हम ये बातचित्त आज कर पा रहे हैं। अब ये वैसे तो हम बोलते हैं कि नेचर में जो चेंज है वो हमेशा होता रहता है। ‘चेंज इस डी ओनली कांस्टेंट थिंग व्हिच इस अवेलेबल’ तो अगर तो ये चेंज अच्छे के लिए हुआ है तो हमे एक्सेप्ट कर लेना चाहिए। के ‘इट वाज़ गुड’ और हमे इसे ‘एज़ अ पार्ट ऑफ़ लाइफ’ एक्सेप्ट कर लेना चाहिए। लेकिन अगर ऐसा नहीं था, फिर हमे एक्सपलोर करने कि जररूत है कि क्यों ये सिविलाइज़ेशन वाइप आउट हुई?  जब आज फेमिनिज्म की बात करते हैं, आज हम एनवायरनमेंट की बात करते हैं, तो अगर ऐसी सिविलाइज़ेशन पहले ही थीं तो उनके बात हुआ क्या है?

ये सारी सिविलाइज़ेशन आज ऑलमोस्ट नॉन एक्जिस्टेंट हैं। और जिन्होंने इनको ख़तम किया था, वो डोमिनेंट हैं। इसके साथ हमारे माईंडसेट में भी बहोत सारे चैन्जिस आए हैं। हमारे माइंड में एक
इमेज बनती है कि पुराने जो लोग थे वो वहशी थे, वो जानवर थे, पढ़े लिखे नहीं थे, और हम उनको ट्राइबल या कम्युनिस्ट…सॉरी.. कम्युनिटीस कह सकते हैं उनको, कहते भी है। उसका एक एकजाम्पल मुझे रिसेंटली नेट पे ही देखने को मिला था।  वो मैं  शेयर करना चाहता हूँ। नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश मैं गए थे, वहाँ पर  उनकी कोई  रैली थी। तो उनका ये गेटअप है। इस गेटअप का बहोत ज्यादा मजाक उड़ाया गया। और ये आपको ट्विटर पे देखने को मिलेगा, एक बहोत सीनियर जौर्नलिस्ट हैं जो इसका मजाक उड़ाते हुए एक इमेज  को उन्होंने शेयर किया था। वैसे वैसी  सेकड़ो हो सकती हैं लेकिन ये मेरे माइंड में एकदम स्ट्राइक की के  हम कहाँ  पर पहुंच गए हैं। अब आप इस इमेज को  देखेंगे, तो ये  मैसेज क्या कॉन्वे कर रही है कि जो तो सूट पहने वाला होता है, तो वो तो होता है  जेंटलमैन लेकिन ये क्योंकि ये ट्राइबल यूनिफार्म  पहनी हुई थी इसलिए ये जानवर है। ये इस लेवल तक हम इन चीज़ो को इंटरनलाइज़ कर चुके है कि वो लोग जो हमारे यहा का डिस्कोर्स कन्ट्रोल करते थे। यहां के जो सो कॉल्ड सीनियर जौरनेलिस्ट हैं, ये उनका माइंडसेट है। और ये मिंडसेट पिछले 2000 सालों में सिसटेमेटिकली हमारे अंदर धीरे धीरे बैठता गया। और आज हम उसको चैलेंज भी नहीं करते, उसको एक्सेप्ट कर लेते हैं  की ये  नार्मल है।

अब इसको अगर आप डिवाइड करने की कोशिश करें तो शुरू से देखेंगे तो दो  तरह की अलग अलग ट्रेडिशन ऑफ वरशिप देखने को  मिलती हैं। जिन्हे हम दो आइडियोलॉजीस कह सकते हैं जो एक दूसरे के पैरलल हैं या दो विचारधारा कह सकते हैं। जितनी सिविलाइजेशनस वाइप आउट हो चुकी हैं जिनकी हम डिस्कशन कर रहे थे, प्लस जो हमारी बची हुई है जिसे हम वैदिक सिविलाइज़ेशन बोलते है इसे मैंने एक कैटागोरी मैं रखा है क्युकी वो नेचर की रेस्पेक्ट करते थे। इसलिए मैंने उनको नेचुरल या प्राकर्तिक के नाम से प्रेजेंट किया है यहाँ पे। और इनका कंमपेरिज़न या पूर्वपक्ष करने वाले हैं जिसे हम पेगम्बरवादी बोलते है। पेगम्बरवाद, पैगम्बर से आ रहा है, पैगम्बर  वर्ड पैगाम से आ रहा है, के परोफेट है या पैगम्बर है जैसे कोई भी जो क्रिएटर है जो गॉड है या अल्लाह है, अगर वो है। जो मैसेजस देता है, वो मैसेजस वो सबको नहीं देता। किसी एक को चुज़ कर लेता है कि वो उसका पैगम्बर है या परोफेट है। और फिर वो जो प्रोफेट या पैगम्बर है वो उन मैसेजस को आगे आम लोगों तक पहुँचाता है। तो जो गॉड है या अल्लाह है उसने ये वाला प्रोसेस चूज़ किया है अपनी इनफार्मेशन कॉम्यूनिकेट करने के लिया। और इसे हम पैगम्बरवाद के नाम से आज जानते है। पैगम्बरवाद का जो पहला हमे ब्रांच मिलता है सॉरी.. प्राकरतिक मैं  आलरेडी डिसकस कर चूका हूँ कि हम यहां पर हिन्दुइज़्म की बात करने वाले है क्योंकि  वही उनमे बचा  है बाकि के ऑलमोस्ट वाइप आउट है। और दूसरी साइड पे पैगम्बरवाद  देखते है तो वहाँ पर जो पहली हमे ब्रांच मिलती है वो  है जूदाइज़्म जिसे हम हमारे देश मैं यहूदी कहते है।

इसमें से आगे दो ब्रांचेज़स निकलती है जिनको प्रॉफेटिक रेलिजनस आज हम जानते हैं, जो डोमिनेंट है सबसे ज्यादा। सबसे पहले इसी मैं से निकलती है क्रिस्चैनिटी, और फिर इसी मैं से निकलता है इस्लाम। इसको हम थोड़ा सा डेबिट कर सकते है की जो इस्लाम है वो क्रिसचेनिटी से ज्यादा निकला है या जूदाइज़्म से ज्यादा निकला। लेकिन बॉटम लाइन ये है की ये तीनो ही प्रॉफेटिक रेलिजनस है और थोड़ा थोड़ा इनमे डिफरेंस है। आज के डिस्कशन में मैं फोकस नीचे वाले दो पर रखने वाला हूँ क्रिसचेनिटी और इस्लाम के ऊपर क्योंकि इनमें बहोत ज्यादा चीजे ओवरलैप करती हैं। बहोत ज्यादा कॉमन है। सबसे पहला जो आस्पेक्ट है पैगंबरवाद का, वो पूरी की पूरी ह्यूमैनिटी को दो कैटागोरिस मैं डिवाइड करता है। वो उनकी टर्मिनोलॉजी अलग हो सकती है, लेकिन पूरी ह्यूमैनिटी को डिवाइड जरूर करता है। ये वैसे तो हर आइडियोलॉजी में आता है क्युकी कोई भी विचारधारा आप लेंगे तो उसमे अच्छे और बुरे की कांसेप्ट हमेशा प्रेसेंट होती है। तो जो तो नैचुरलैस्टिक हैं, प्राकर्तिक हैं, उनके अंदर ये जो डिवीज़न है वो किस बेसिस पे की जाती है ? वो उसका जो बैस है वो है उसके एथिक्स कैसे हैं ? या उसका बिहैवियर कैसा है ? इसका सबसे कॉमन जो एक्साम्पल आप ले सकते है वो है राम और रावण का। राम और रावण एक ही भगवान की पूजा करते है दोनों शिव के भक्त हैं, तो यहाँ  पर वो किसको पूज रहे हैं वो उनको अच्छा या बुरा नहीं बनाता। उनका जो बिहैवियर है उनके जो एथिक्स हैं या उनके  जो एक्शनस  है वो उनको अच्छा या बुरा बनाते हैं। अगर कोई बिहैवियर  बुरा कर रहा है उसको जो व्यावहार है वो गलत लगता है

जो एक्सेप्टेड नौरमस है उसके अकॉर्डिंग  नहीं लगता तो हम उसको बुरे की कैटागोरी मैं डालते हैं। और इसलिए रावण को आज भी जब हम रामलीला मनाते हैं या दशहरा मनाते हैं तो वहाँ  पर हम उसको बुराई के प्रतीक के रूप में देखते है। जो पैगम्बरवाद है उसके अंदर जो ये केटेगोरीजेसन है वो थोड़ी सी अलग है। इसमें ये जो केटेगोरीजेसन है वो फैद पे या रैलीजनस के बैसिस पे की जाती है। के अगर तो वो मेरे फैद वाला है, वो मेरे रिलिजन वाला है,  मेरे मजहब वाला है, तो तो वो अच्छा है, अदरवाइज़ वो बुरा है। उसको रिजेक्ट किया जा सकता है जिसे आजकल हम अदराइजैशन कहते हैं के ‘ही इस डी अदर’। अब ये अदर वाली कांसेप्ट, जो प्राकृतिक रिलिजनस  है उनके अंदर नहीं है। के वो किसलिए बुरा है के वो एक घर मैं पैदा हो गया या एक रिलिजन मैं पैदा हो गया इसलिए बुरा नहीं माना जाता ‘एस फार एस नेचुरल थौट प्रोसेस इस कंसर्नड’। लेकिन जब आप प्रोफेटिक रेलिजनस पे आते हैं, वहाँ पर ये कटेगराइजेशन फैद बेसड कह सकते है या रिलिजन बेसड कह सकते है। यहाँ पर जो कटेगराइजेशन है वो है अगर आप करिशचनीज़म देखेंगे, तो बिलीवर वरसिज फिडेलिटी हो जाती है। इस्लाम देखेंगे तो, मोमिन वेर्सिस क़ाफ़िर हो जाती है। ये जो डिवीज़न की रही है वो एथिक्स से  लिंक्ड नहीं है।

इसका बेस्ट एक्साम्पल हम ले सकते है गांधी जी के एक्साम्पल से। वैसे लोगों की अलग अलग राय है, कुछ लोग गांधी को अच्छा बोलते हैं, कुछ बुरा बोलते है।  उस डिबेट पे नहीं जाएगे। लेकिन वर्ल्डओवर ये माना जाता है कि नॉन वोइलेंस की बात करते थे तो बहोत अच्छे आदमी थे  ‘ही वाज आ वेरी गुड़ ह्यूमन बीइंग’। लेकिन इन दोनों रिलिजनस ने उनको कैसे ट्रीट किया है, वो हमे बहोत अच्छा, बहोत क्लियर एक्साम्पल देता है कि किस तरह से ये डिस्क्रिमिनेशन या डिफरेंस क्रिएट किया जाता है। 2012 मैं एक चर्च है अमेरिका मैं, यहाँ पर भी उसके लोग प्रेजेंट हैं, ‘डी चर्च ऑफ़ जेसिस एंड द लैटर डे सेंटस’ जिससे शार्ट मैं ‘मोर्मोंस’ भी कहा जाता है। उन्होंने 2012 में महात्मा गाँधी को बेपटाइज़ किया। बेपटाइज़ करने का मतलाब है की उनको क्रिशचन बनाया, क्रिस्टैनिटी में कन्वर्ट किया। इनअबशेंशिया, उनके मरने के बाद इसका रिज़न क्या है ? के लोग पछुते है, के आप बोलते हो के अच्छे लोग है वो हेवेन मै जाएँगे, जो बुरे लोग हैं वो हैल में जाएँगे। तो गांधी जी के बारे में आपका क्या कहना है ? तो जनरली, जो क्रिशचन है वो एक कार्नर में फ़ंस जाते थे कि हम इसका क्या आंसर दें? क्यूकि जो उनकी क्लासिफिकेशन है, उसके अकॉर्डिंग जो क्रिशचन नहीं है, जिसने क्राइस्ट को एक्सेप्ट नहीं किया है ‘एज़ हिज/हर सेवीयर’ वो जितना मर्ज़ी अच्छा हो, कर्म जितने मर्ज़ी अच्छे हो, वो हेवन में नहीं जा सकता, वो सिर्फ हेल में जा सकता है। तो गांधीजी को उन्होंने बचाना था, इसलिए उनको बेपटाइज़ किया गया।

अब हम लोगों के लिए हँसी की बात हो सकती है लेकिन उनके लिए हँसी की बात नहीं है, उनके लिए बड़ा नेचुरल सा प्रोसेस है। के अगर किसी को बचना है तो उनके पास एक ही रास्ता है, वो बलाइंड फैद है कि ‘जीसस इस द सेवियर’। दूसरा एक्साम्पल हमे हमारे देश की हिस्ट्री में मिल जाता है। जब हम अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे थे, तो एक खिलाफत मूवमेंट चली थी यहाँ पर। जिसमे दो मुसलमान भाई थे, जिनको गांधी जी ने अपने साथ मिलाके वो एजिटेशन करने की ट्राई की थी। तो ये एजिटेशन 1919-20 में हुआ था। लेकिन 1924 में ही यही दो जो भाई थे, जो मौलाना थे, उनका कहना था की हमारी नज़रो में जो गांधी है वो सबसे गिरे हुए मुसलमान से भी गिरा हुआ आदमी है क्योंकि हमारा रिलिजन ये कहता है, हमारा मजहब ये कहता है। तो ये फर्स्ट मेजर डिफरेंस है, जो प्रॉफेटिक रिलिजनस है और जो नेचुरल रिलीजंस है। उनमें जो डिफ्रेंशिएशन है वो एक तरफ मजहब के आधार पे और तरफ दूसरी एथीकस के आधार पे की जाती है।

पहले जो टाइम था वो इतना खुला नहीं था। कम्युनिकेशन इतनी स्ट्रॉन्ग नहीं होती थी। तो तलवार के दम पे, या बन्दुक के दम पे, कन्वर्शन किये जाते थे। और इस चीज़ का गर्व किया जाता था कि हमने इतने लोगो का कन्वर्ट कर दिया है।आज सिचुएशन बदल गयी है। तो जब हम काफिर वेर्सिस मोमिन की बात करते हैं तो इसमें, इसको डिफेंड करने के लिए बहोत सारे अलग अलग आर्गुमेंटस दिए जाते हैं कि काफिर किसको कहते हैं। इसमें जो सबसे कॉमन आर्गुमेंट है, वो ये होता है के काफिर उसे कहा जाता है जो किसी को भी नहीं मानता। जिसे हम एथीस्ट कहते है नार्मल लैंग्वेज में। और जो अपोलॉजिस्ट हैं जो इस्लाम को डिफेंड करने की ट्राई करते है वो इसके लिए और भी बहोत सारे आर्गुमेंट देते है। हम उस डिटेल में नहीं जा रहे। अब इस्लाम की जो सबसे बड़ी अथॉरिटी हैं, वो कुरान हैं, क्योकि उनके अकॉर्डिंग जो कुरान है वो वर्ड ऑफ़ अल्लाह है के अल्लाह से निकली हुई है इसलिए इसमें कोई चीज़ गलत नहीं हो सकती। तो ये जो काफिर की डेफिनिशन है हम वही से ले सकते है। कोई मौलाना, मुफ़्ती, मौलवी, इमाम, जो मर्जी कह ले वो इससे ऊपर नहीं जा सकता। अब ये कुरान का चैप्टर नंबर 98 है, इसमें आप पहली वर्स अगर देखगे तो ये क्लियर कर देती है ‘जो लोग काफिर हैं यानि अहले किताब और मुशरिक’, इतने में हमारी डेफिनेशन पूरी हो जाती है। जो लोग काफिर हैं यानि अहले किताब, अहले किताब: ‘अहल’ मीन्स लोग या पीपल, ‘किताब’ यानि बुक। पीपल ऑफ़ डी बुक, वो सारे के सारे काफिर हैं। अब यहां पर जब अहले किताब कह रहे है तो यहाँ पर दो क़िताबों कि बात हो रही है: एक तोरा की, जो जूदाइज़्म की किताब है। दूसरी बाइबिल कि, जो क्रिस्टियन्स कि किताब है। तो इस डेफिनिशन से जो क्रिस्टियन हैं, वो क्राइस्ट को मानते हैं। जो यहूदी हैं वो जीहुआ को मानते हैं या याहवी को मानते हैं। ये दोनों के दोनों काफिर हैं।

व्हिच शुड टेल, जो आपको ये बड़ी क्लेअरली बताता है के काफिर वो नहीं है जो किसी को नहीं मानता। यहां पर कुरान की डेफिनिशन के अकॉर्डिंग सारे ज्यूस और सारे क्रिस्टियन काफिर हैं। नेक्स्ट वर्ड है, ‘अहले किताब और मुशरिक ‘, मुशरिक वर्ड अगर आप एथनोलॉजिकली देखेंगै, तो शरीक वर्ड से बनता है। हमारे यहाँ शरीक वर्ड बड़े कॉमनली युस किया जाता है के ‘उन्होंने वहां पर शिरकत की ‘ या ‘वो वहां पे शरीक हुए’। शरीक होना मतलब किसी के साथ ज्वाइन होना। तो जो किसी को ज्वाइन करता है, कनेक्ट करता है, वो मुशरिक है। तो अगर हम कहते हैं ईश्वर अल्लाह तेरो नाम। या अल्लाह भी वही है, राम भी वही है तो हम मुशरिक हैं क्योकि हम अल्लाह का कम्पेरिजन किसी और के साथ कर रहे हैं। तो मुशरिक मीन्स वो सारे के सारे लोग, जो ये बोलते हैं के अल्लाह, जीसस, राम, कृष्ण, ये सारे के सारे एक ही के अलग अलग नाम हैं, वो सारे के सारे मुशरिक हैं। तो ये एक वर्स या एक डेफिनिशन हमे बता देती है के यहाँ पर जो डिवीजस्न है काफिर और मोमिन की वो रिलिजन के बेसिस पे है। और इसके अंदर सारे जो गैर-मुसलमान है वो काफिर है। जो हम आदराइज़ेशन की बात करें, गैर होने की बात करें, वो सारा का सारा यहाँ पर प्रॉफेटिक रिलीजंस में इस तरह से आता हैं। फिर इसी चैप्टर कि जो 6 वर्स है वो देख लीजीये। जो लोग काफिर हैं, यानि अहले-किताब और मुशरिक, वो दोजख की आग मे पड़ेगे, और हमेशा उस में रहेंगे। ये लोग, ये लोग सब मखलूक से बद्द्तर हैं।

यहाँ पे दो चीज़ हमे ध्यान में देनी है, एक तो ‘दोजख की आग मे पड़ेगे’ देट मीन्स उसकी एथिक्स मैटर नहीं करते, वो महात्मा गाँधी है, या कोई और है। वो जितना मर्ज़ी अच्छा हो सकता है, लेकिन द मैंन फैक्ट वो अल्लाह को नहीं मनाता, वो दोजख मे गिरने वाला हैं। दोजख की आग मे हमेशा के लिए रहने वाला है। सेकेंड पोरशन जो है, ये लोग सब मखलूक से बत्तर है, मखलूक यानि जितने भी लिविंगबिंग्स हैं उन सब से घटिया ये हैं। जिसमे सारे के सारे गैर- मुसलमान आ जाते है। तो यहाँ पर कुरान की डेफीनेशन ये जो डिवीज़न है उसको क्रिएट करती है। अब ये तो हुआ के हमने हुमंस को ह्यूमैनिटी को 2 कटेगोरिस मे डिवाइड कर दिया। 2 हॉस्टिल ग्रुप्स हैं जो हमेशा आपस में लड़ते रहेंगे। दूसरा है, जो ये पैगम्बरवाद है जिसे हम प्रॉफेटिज़्म कहते हैं, इन्होंने गॉड को भी आदराइज़ किया हुआ है कि गॉड भी अदर है। अब ये हमारे देश में लोगो के लिए समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है। जब पहली बार मुझे भी किसी ने कहा था कि जिस अल्लाह की वो पूजा कर रहे है वो तो कोई अलग है, तो मुझे भी लगा था के बेवखूफ़ हैं, गलत कह रहे हैं, के हम नाम अलग अलग ले सकते हैं लेकिन प्रॉपर्टीज तो वही वाली हैं।

तो हमारे देश का जो कल्चर है यहाँ का जो माहौल है बिलकुल ऐसा है कि चीज़ समझनी बड़ी आसान नहीं है। या जो कहता भी है हम उसे मुर्ख समझ लेते है, हम उसकी बात समझने कि कोशिस नहीं करते। जबकि उनके स्क्रिपचरस मे ये सारी चीज़े बड़ी क्लेयरली बताई गयी हैं। के वहां पर हुमंस को अलग अलग नहीं किया जा रहा है वहाँ पर गॉड को भी अलग अलग किया जा रहा है। इसका एक्साम्पल मे बाइबिल मे से ले रहा हूँ। ये ओल्डटेस्टामेंट है, डुटेरोनॉमी चैप्टर नंबर 13, आप पहले इसका टाइटल ही देख ले ‘वॉरशिपिंग अदर गोड्स’ ये जो टाइटल है ये बताता है कि गॉड भी कई तरह के हैं, एक हमारे वाला है और एक दूसरे वाला है। तो वॉरशिपिंग अदर गोड्स, जो हमारे वाले नहीं है वो अदर गोड्स हैं। अब इसकी जो डिटेल है वो देखते हैं। ऍफ़ आ प्रोफेट और वन हु फोरेटेलस बाई ड्रीम्स, अप्पेअर्स अमॉंग यू एंड अन्नोउंस टू यू ऐ साइन और वंडर एंड ऍफ़ दी साइन और वंडर स्पोकन ऑफ़ टेक्स प्लेस एंड दी प्रॉफेट सेज़, “लेट अस फॉलो अदर गॉड” के कोई भी आदमी अगर आपको ये कहता है कि हम अदर गोड्स को वरशिप करते हैं। तो उसके साथ करना क्या है? देट प्रॉफेट और ड्रीमर मस्ट बी पुट टू डेथ! जो आपको सिर्फ इतना कहता ही है कि आओ हम किसी और गॉड कि पूजा करते हैं उसको आपने जान से मार देना है। दिस इस डी काइंड ऑफ़ डिफ्रेंटिएशन जो नेचुरल और प्रॉफेटिक रिलीजंस के अंदर आती है।

इसी चैप्टर मे इसके आगे चलते हैं, ऍफ़ योर वैरी ओन ब्रोदर और योर सन और डॉटर और योर वाइफ यू लव और क्लोजेस्ट फ्रेंड सेक्रेटली ऐन्टिसेस यू, सेइंग “लेट अस गो एंड वर्शिप अदर गोड्स” तो आपके घर के लोग है जिनसे आप बहोत प्यार करते हैं, वो कहते हैं कि हम किसी और गॉड कि वरशिप करते है। तो क्या करना है : ढू नॉट यील्ड टू देम और लिसेन टु देम। शो देम नो पिट्टी। ढू नॉट स्पेयर देम और शील्ड देम। यू मस्ट सर्टेनली पुट देम टू डेथ। सिर्फ इसलिए क्योकि वो किसी और गॉड की पूजा करने कि बात कर रहे हैं आपने उनको जान से मार देना है। उनपे कोई दया नहीं करनी।योर हैंड मस्ट बी दी फर्स्ट इन पुटिंग देम टु डेथ, एंड थेन दी हैंड्स ऑफ़ आल थी पीपल। सबसे पहले तुम उनको मारोगे,  उसके बाद कोई और ही मारने का काम करेगा। स्टोन देम ट डेथ। पत्थर मार-मार के उनको मार देना है। क्यों मार देना है? बिकॉज़ दे ट्राइड टू टर्न यू अवे फ्रॉम दी लार्ड, योर गॉड। तो जो गॉड है वो कमांड देता है कि अगर मेरे अलावा किसी और गॉड के बारे मे पूजा कि जाती है, उसकी वरशिप कि बात भी कि जाती है, तो इर्रेस्पेक्टिव ऑफ़ के वो कोन है? वो आपका भाई है, आपका बेटा है, आपकी पत्नी है, आपका दोस्त है, आपने उनको जान से मरना है। तौ ये सेकंड पार्ट है जहाँ पर प्रॉफेटिक रिलिजन अलग हो जाते है के सिर्फ ह्यूमैनिटी को नहीं, ये गॉड को भी अदराइज करते हैं कि दूसरा गॉड अलग है हमारे वाला उससे सुपीरियर है। नेक्स्ट है टाइम कि डिवीजनm, के टाइम को कैसे डिवाइड किया जाता है।जो नेचुरल वाले हैं उनके अंदर टाइम की डिवीज़न जैसा कोई कांसेप्ट नहीं है।

ह्यूमन डिवीजन तौ वहां पर भी है अच्छे-बुरे कि कांसेप्ट पे लेकिंन टाइम को डिवाइड नहीं किया जाता। टाइम कि जो डिवीज़न है वो प्रॉफेटिक रिलिजनस मे आती है। इसे आप ऐसे सोच सकते हैं कि जो क्रिस्चैनिटी है उनका क्लेम क्या है कि जीसस क्राइस्ट के मरने से पहले जितने लोग थे, वो सारे के सारे नर्क मे जाने वाले है वो सारे के सारे हेल मे जाने वाले है। क्यों?  क्योकि उन्होंने जीसस क्राइस्ट को अडॉप्ट नहीं किया था। ये नहीं बोला था कि ‘ही इस दी ओनली सेवियर’। और जीसस क्राइस्ट के जन्म के बाद भी जितने लोगो ने जन्म लिया है उनमे से सिर्फ वही लोग बचेंगे जिन्होंने उसको एक्सेप्ट किया है।बाकि के हेल मे जाएगें। जिन्होंने एक्सेप्ट कर लिया था वो हैवन मे जाएगें। इसलिए जो हम डिवीजन देखते है बी.सी. एंड ऐ.डी. वाली, बिफोर क्राइस्ट एंड आफ्टर क्राइस्ट वाली। और इस्लाम मे वही डिवीजन है उनका कहना है की पहले जो सारी कि सारी दुनिया थी वो जाहिल थी। जाहिलियत का समय था इस्लाम के आने से पहले और जब से इस्लाम का नूर फैला है वो सेकंड कैटोगरी है वो आफ्टर इस्लाम है। तौ टाइम कि डिवीज़न इस तरह से कि जाती है, के पैगम्बर के आने से पहले सारे लोग मुर्ख थे सारे बेवकूफ थे।

तौ जो ये सिविलाइज़ेशन वाइप आउट हुई हैं, वो सारे के सारे लोग जाहिल थे। उनके इस्लाम के आने के बाद यहाँ पर नूर जो है वो फैलना शरू हुआ है। नेक्स्ट जो मेंन डिफरेंस आता है, नेचुरल जो विचारधारा है और जो प्रॉफेट विचारधारा है उसमे वो है पुनर्जन्म को लेके। पुनर्जन्म एक ऐसी चीज़ है जो हमारे समाज मे एक्सेप्टेड माना जाता है। के पुनर्जन्म एक सीरीज ऑफ़ बर्थ है के एक शरीर ख़तम होता है और दूसरा शरीर शुरू हो जाता है। हमारी अपनी क्लास मे 1 बच्चा था। लड़का था एक हमारा दोस्त, जिसका कहना था के ये उसका घर नहीं है जिसमे उसका जन्म हुआ है। उसका जन्म राजस्थान मे हुआ था।तौ पेरेंट्स उसको वहां लेके गए।तौ उसने सारे लोगो को पहचान लिया था।के ये मेरी माँ है, ये मेरी बहन है, ये मेरी बेटी है। तौ यहाँ पर पुनर्जन्म को एक्सेप्ट किया जाता है इसलिए.., एक फैक्ट है।यहाँ पर एक फैक्ट माना जाता है। अंधविश्वास नहीं माना जाता।उसका रिजल्ट क्या है यहाँ पर ये एक्सेप्टेड है के हमे जो परिस्थिति मिली है, हमे जो सिचुएशन मिल रही है, वो हमारे कर्मो के कारण है। इस जन्म मे जो मिला है वो भी, और इस जन्म के बाद जो मिले गए वो भी। तौ मे अगर एक्सरसाइज कर रहा हु तौ मेरा शरीर फिट रहने वाला है, वो मेरे कर्मो का परिणाम है।

अगर कोई बच्चा किसी तरह से अपाहिज पैदा होता है, जिसे हम दिव्यांग बोलते है, तौ हम ये एक्सेप्ट कर के चलते है कि उसके पिछले जन्म का कोई कारण था। कोई ऐसा कर्म था जिसके कारण उसको ये ऐसा जन्म मिला है। लेकिन, जो अब्राहमिक थॉट है, जो पैगम्बरवाद है उसके अंदर इसको नहीं माना जाता। उनका कहना है कि एक ही जन्म होता है और उसी मे सारा का सारा आप कर सकते है और उसके बाद हेवन या हेल मे आपको जाना है। के एक ही लाइफ है। इसके खतम होने के बाद जजमेंट होगी, जिसमे कुछ लोग नर्क मे जाएगें और कुछ लोग सवर्ग मे। हैवन, हेल, जन्नत, जहानुम, वो वॉर्डिंग अलग अलग है बस उनकी। इसमें एक प्रॉब्लम आती है। अभी ये जितनी आइडियोलॉजी हैं,  उन सबका कहना है के जो भी उनका गॉड है या अल्लाह है,  वो बहोत प्यार करने वाला है, वो बहोत ज्यादा न्याय करना वाला है। एक तरफ ‘जीसस लव्स यू’ बोला जाता है। और दूसरी ओर अल्लाह को ‘रहमान ऐ रहीम’ बोला जाता है, के सब पे रहम करता है। अब ये पुनर्जन्म वाले कुएस्शन पे वहाँ पर एक डाउट क्रिएट हो जाता है,  के अगर वो इतना दयावन है,  अगर वो जस्टिस लविंग है,  तो किसी बच्चे को अपाहिज क्यों पैदा करता है? अगर अपाहिज बच्चा पैदा हो रहा है तो वो,  अपने लिए,  उसके लिए प्रॉब्लम है प्लस उसके माँ-बाप के लिए प्रॉब्लम है। या उनके लिए किसी न किसी तरह से कोई एक दुःख का कारण तो वो है।

अब ये दुःख क्यों दिया गया? अगर सबके लिए एक़्वालिटी है, सबके लिए जस्टिस है,  सबके लिए प्यार है,  तो यहाँ पर जो पैगम्बरवाद है वो इसका आंसर नहीं दे पता। या कम से कम मैं आज तक नहीं देख पाया के उन्होंने कोई आंसर दिया हो। नेक्स्ट जो डिफरेंस है वो है के नेचर के साथ क्या रिलेशन है? प्रकृति के साथ क्या सम्बंद है इनका? जो, नेचुरल थॉट है,  उसके अंदर है के हमे नेचर से सारा कुछ मिलता है तो हमे उसके लिए रिस्पेक्टफुल होना चाहिए। के अगर नदी है तो उसको भी माता बोलते है।वो माँ क्यों बोल रहे है? अब इसको अगर हम बिलकुल एक लैयमन लैंग्वेज मे समझ के देखें, के हमने बच्चे को बताना है के बेटा ये नदी मे गंद नहीं डालना क्युकी इसीका पानी हम पीते है। तो हो सकता है हमारे कहने पे, हमारे सामने वो रुक जाएगा। लेकिन बाद मे शायद उसमे पत्थर भी फेंक देगा और शायद उसमे मल-मुत्तर भी छोड़ देगा। लेकिन अगर हम उसको ये बता देते है के ये हमारी माता है, या हमने इसे माँ की तरह ट्रीट करना है तो शायद अपना बिहैवियर चेंज कर लेगा। इसके पीछे जो थॉट है, वो है की हरेक चीज़ हमे नेचर से मिलती है,  प्रकृति से मिलती है। और जो देने वाला है उसको देवता कहते हैं। अगर देवता है तो ये हमेशा एक म्यूच्यूअल रिलेशनशिप रहेगा। अगर हम नदी को खराब करते जाएगे, तो कल को नदी भी हमे खराब करने वाली है वो आज हम देख रहे हैं। इसको, दूसरी साइड पे अगर हम कम्पेयर करें के जो पैगमबरवाद है उसमे इस तरह की कोई कांसेप्ट देखने को नहीं मिलती है।

उनका सिंपल सा एक स्टेटमेंट है के जो कुछ अवेलेबल है वो ह्यूमन की एक्सप्लोइटेशन के लिए है। के जो ह्यूमनबिंग्स हैं, इसको यूज़ कर सकते हैं,  उनके लिए बनाया गया है। और इसका सबसे अच्छा एक्साम्पल हम अगर कम्पेयरीज़न करना चाहते है तो भगवत गीता से देख सकते है। वहाँ पर हमे दूसरे-तीसरे चैप्टर मै इसके बारे मे काफी सारा एजुकेशन मिल जाती है। के जो देवता है उनके साथ हमारा परस्पर सम्बन्ध है के अगर हम म्यूच्यूअल रिलेशनशिप को फॉलो नहीं करेंगे तो ना तो देवताऔ की पुष्टि होगी और ना हमारी पुष्टि होगी। ऑन दी अदर हैंड, अगर आप इसीको जो पैगंबरवाद है उसमे ढूंढने जाते है तो वहाँ पर किसी दूसरे जीव पर दया करने की बात नहीं आती है। क्युकी बाइबिल मे सेंक्शन मिल जाता है कि आप इनको मार के, काट के, खा सकते हैं। तो यहाँ पर,  जो चीज़ें है उसको आप एक्सप्लॉइट कर सकते है। और शायद ये कारण है के आज हम जो एनवायर्नमेंटल क्राइसिस दुनियाभर मे देख रहे हैं, वो इस विचारधारा के फैलने के साथ-साथ फ़ैला है। इसमें हम इसकी डिबेट जरूर कर सकते हैं कि पोपुलेशन एक्सप्लोजन हो रहा है, पोपुलेशन बहुत बढ़ रही है, लेकिन जो बेसिक माइंडसेट है अगर हम उसको कॉमपेरीजन करना शुरू करेंगे तो वहाँ से हमे एक क्लैरिटी आ सकती है कि ऐसा क्यों था के जो ह्यूमनबींग्स है वो तो यहाँ लाखों साल से है लेकिन एनवायर्नमेंटल डिजास्टर हमे पिछले 2000 साल मे देखने को मिलता है। टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट पहले भी थी जैसा हम आलरेडी डिसकस कर चुके है कि सारी सिविलाइज़ेशन जो थी, जिनको वाइप आउट किया गया है, वो टेक्नोलॉजिकली एडवांस थी। ऐसा नहीं था की उनको नहीं पता था क्या करना है लेकिन अब हम उसको इंडस्ट्रीयल रेवोलुशन का नाम दे देते है या उसको हम ग्रीन रेवोलुशन का नाम दे देते हैं।

लेकिन जो माइंडसेट है वो वही है कि हरेक चीज़ हमारे एक्सप्लॉइट करने के लिए बनीं है। इसमें वो एक सिंपल सा एक्साम्पल दिया जाता है कि अगर आपको किसी खेत मे से पैदावार बढ़ानी है तो वहाँ पे इंसेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड डाल दो। वहाँ पे कीड़े मकोड़े मर जायेगे लेकिन हुमंस की जो कंजम्पशन है उसके लिए तो अच्छा खासा मिल जाएगा। अब अगर हम सिर्फ एग्रीकल्चर को ही कॉमपेरीजन करके देखते है तो कम से कंम 10000 साल पुराना तो हमारे देश का डॉक्युमेंटेड रिकॉर्ड है के यहाँ पर हम एग्रीकल्चर कर रहे थे। और बिना किसी इंसेक्टिसाइड के, बिना किसी पेस्टिसाइड के किया जाता था क्युकी यहाँ पर जो नेचर है वो हमारी हेल्प करती है के अगर ऐसे कीड़े है जो पैदावार को खाते है तो उन कीड़ो को खाने वाले जिन्हे हम आज मित्र कीट बोलते है वो भी अवेलेबल हैं। लेकिन जो ओवरआल माइंडसेट है अगर आप उसको कॉमपेयर करके देखेंगे तो एक तरफ है जहां पर एक रिसोप्रोसिटी है, के म्यूच्यूअली एक दूसरे को हेल्प करनी है की जो देवता है वो हमारा भला करते है तो हमे देवताऔ का भला करना है।

दूसरी ओर है की गॉड ने क्रिएट किया हुआ है, ये सारा ह्यूमन कंजम्पशन के लिए है और हमने इसको एक्सप्लॉइट करना है।नेक्स्ट जो मेजर डिफरेंस है, वो है के विमेंस के बारे मे, महिलाओ के बारे मे, दोनों कल्चरस, दोनों तरह की आइडियोलॉजी है वो क्या कहती है। जो मैंने पहले सारे सिविलाइज़ेशनस का डिस्कशन किया था उसमे जब मैं देवी की बात कर रहा हु तो वहाँ पर ये पॉइंट सबसे इम्पोर्टेन्ट हो जाता है कि कोई भी ऐसा समाज जो देवी की पूजा कर रहा है वो महिलाओ को नीच दृष्टि से या बुरी नजर से नहीं देखता। एक्ससेप्शन हो सकते है लेकिन एज आ कम्युनिटी, एज आ समाज ऐसा नहीं देखने को मिलता। तो यहाँ पर, जैसे हम अपने देश मैं देखते हैं के जो नारी है उसको शक्ति का प्रतीक माना जाता है और उसको डिपिक्ट भी, उसको पोर्ट्रे भी, वैसे किया जाता है। लेकिन जो पैगंबरवाद है उसके अंदर एक्सेप्टेड फैक्ट है की जो लेडीज है वो मर्द से इन्फीरियर होती है। इसका जो ओरिजन हम मान सकते है वो ओरिजिनल सिन से आ जाता है के, आई होप सबको पता होगा ये के जो आदम और ईव वाली कहानी है के दोनों को बनाया गया था। लेकिन क्युकी ईव ने बोला था के वो वाला फल खा लेते हैं इसलिए उसको गॉड ने स्पेसिअल पनिशमेंट दी,  उसको स्पेसिअल एक श्राप दिया है के जो लेडीज है वो हमेशा इन्फीरियर रहने वाली है। अब जो आज हम फेमिनिस्ट मूवमेंट देखते है दुनिया भर मे, वो भी इसीका रिजल्ट है। के वो हमे कभी एशिया मे देखने को नहीं मिलता के महिलाओ को लिब्रेट करने की जरुरत है।

वो वही पर देखने को मिलता है जहा पर उनको सप्रेस किया जाता है। जब हम अपने देश मे देखते है तो यहां पर सिर्फ देवी को पूजा जा रहा है सिर्फ उतना नहीं है, यहाँ पर हर साल फिर उसको रीनफोर्स किया जाता है वो रक्षाबंधन है उससे भी किया जाता है। या जब हम देवी पूजन मे जाते है, नवरात्रो मे जाते है, तो वो सारा इन चीज़ो को रीनफोर्स करने मे मदद करता है। ऑन दी अदर हैंड, जो लेडी की डिपिक्शन प्रॉफेटिक रेलिजिन्स मे की जाती है, पैगम्बरवाद मे की जाती है, वहाँ पर पैगंबर का जो स्टैंड है वो ये है के महिलाये इन्फीरियर है। क्युकी उनको एक तो फिजिकल इन्फेरियरीटी है उनके अंदर, दूसरा ये जो मर्द है वो अपना माल खर्च करके इनको चलाते है। तो थेओरेटिकाली और प्रॅक्टिकली, ये दो चीज़े हैं जो महिलाओ को या महिलाओ के अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन क्रिएट करती है। नेक्स्ट है ‘नेचर ऑफ़ टरूथ’, हर किसी आइडियोलॉजी का ये क्लेम होता है की सच उनके पास है या उनको पता है दूसरे को नहीं पता। ये किसी भी केस मे एप्लीकेबल है। जो दोनों विचारधारा है, दोनों ट्रेडिशन है, उनमे भी ये इक़्वाली एप्लीकेबल है। लेकिन डिफरेंस क्या है? क़ि जो नेचुरल वाली थॉट प्रोसेस है उसके अंदर कहा जाता है के जो टरूथ है वो हमेशा से रहा है और वो हमेशा वैसा ही रहेगा न तो उसपे कोई व्यक्ति का प्रभाव पड़ता है ना टाइम का प्रभाव पड़ता है। वो शास्वत भी है और अपुरुष भी है, के उसको हुमंस चेंज नहीं कर सकते और टाइम चेंज नहीं कर सकता। फिर ये सच कैसे जाना जा सकता है?  

उसके लिए हमारे यहां सबसे कॉमन है ‘जिन खोजा, तिन पाया’ जो ढूंढ़ने चलेगा उसको मिल जाएगा, जो नहीं जाएगा उसे नहीं मिलेगा। उसके लिए हम गौतम का एक्साम्पल दे सकते हैं। महावीर का एक्साम्पल दे सकते है। पतंजलि ऋषि का एक्साम्पल दे सकते है। के अलग अलग रास्ते हैं। आप उसको कर्मयोग बोल सकते है, कर्मयोग से भी मिल जाएगा। ज्ञान योग से मिल जाएगा। भक्ति योग पे चलेंगे उससे भी मिल जाएगा। फिर, और जो मैंन डिफरेंस आता है कि यहां पर अगर किसी ने बोला है के अगर आप योग आसान ये करोगे, इस तरह से योगा को फॉलो करोगे, ये अष्टांग योग है उसके रस्ते पे चलोगे तो ये आपको मिलेगा। यहां पर हम इसको साइंस के साथ कमपेयर कर सकते है। साइंस मे हम क्या बोलते है के आपका जो क्लेम है क्या वो वेरीफाई किया जा सकता है, क्या उसे रिपीट किया जा सकता है। तो दोनों चीज़े यहां पर एप्लीकेबल हैं के अगर तो उसको वेरीफाई भी किया जा सकता है और रिपीट किया जा सकता है तो हम उसको एक्सेप्ट कर लेते हैं। वो एक सिध्दांत बन जाता है। अगर उसे रिपीट नहीं किया जा सकता तो सिध्दांत नहीं, आप उसको डिस्कार्ड कर सकते हैं। ऑन दी अदर हैंड, जब हम पैगम्बरवाद पे आते हैं, तो वहाँ पर, हर कुछ टाइम के बाद पैगम्बर नया जाता है। उसके पास मैसेज भी नया आ जाता है और वो आपस मे कई जगह पे एक-दूसरे से कन्फ्लिक्टिंग भी है और कॉन्ट्रडिक्टिंग भी है। तो जो सच है वो टाइम के साथ चेंज हो जाता है। प्रोफेट चेंज होता है, पैगम्बर चेंज होता है तो सच भी चेंज हो जाता है। और मैन बात क्या है के यहां पर आप उसको अपने आप नहीं जान सकते वो एक किताब मे लिखा हुआ है जो गॉड था या जो अल्लाह था उसने किताब भेजी, उस किताब मे मैसेज है, पैगम्बर के थ्रू आया था, आप ना तो पैगम्बर के इक्वल हो सकते है, ना प्रोफेट के इक्वल हो सकते हैं, ना सन ऑफ़ गॉड के इक्वल हो सकते हैं। बस आप जो सेकंड हैंड नौलेज है वो आप ले सकते हैं वहां से। इसको आप वेरीफाई नहीं कर सकते। अगर उसमे कोई स्टेटमेंट है, आप उसको लैब मैं जाके कही पर रिपीट नहीं कर सकते आप उसको, ये क्लेम जो है ये वेरीफाईएब्ल नहीं हैं।

और इसमें, जब हम बात करते हैं फेथ की, तो नोर्मली ये कहा जाता है के जब हम डिस्कशन करते हैं तो फेथ बेस्ड डिस्कशन होती है। अब उनफोरचुनैटली या फोरचुनैटली हमारे देश मे फेथ को कोई बहोत अच्छा वर्ड नहीं माना जाता। क्युकी उसको हम ऑलमोस्ट अंध्विश्वास के साथ जोड़ सकते है। के मेरा ये फेथ है, वो फेथ हो सकता है लेकिन उसको हम साइंटिफिक या लॉजिकल नहीं मानते हैं। इसलिए यहां पर जो ये षट्दर्शन की सारी परम्परा है कि न्यायशासतर चलता है कि क्या वो वेरीफाई किया जा सकता हैं, क्या उसमे लॉजिक हैं तो तो हम उसको एक्सेप्ट करेंगे अदरवाइज हम उसको फ्री हैं रिजेक्ट करने के लिए। लेकिन जो पैगम्बरवाद है उसके अंदर अगर आप रिजेक्ट करते हैं तो आप ब्लासफेमी करते हैं। अब ब्लासफेमी एक ऐसा वर्ड है जो हमे हिंदी मे या संस्कृत मे कभी उसका कोई पैरलेल देखने को नहीं मिलता। क्युकी यहाँ पर क्वेश्चन किया जा सकता है और क्वेश्चन के बेसिस पर ही सारा चलता है। जो पुरे का पूरा उपनिषद वाला जो स्ट्रीम है वो क्वेश्चन के बेसिस पे चलता है। ऑन दी अदर हैंड, यहाँ पे क्लोज्ड है, के ये बुक है ‘इट हैज टु बी फॉलोड’। इसमें ‘डेयर इज नो इफ नो बट’ ‘डेयर इज नो क्वेश्चन’, आप क्वेश्चन पूछेंगे तो आपका गला काटा जा सकता है। क्यूकि आप फिर अदर मे चले जाते है। हालांकि, इसको अगर हमने कंट्रोल के हिसाब से देखना होतो पैगम्बरवाद बहोत अच्छा है। के इसमें वो, ‘लीव’ ही नहीं मिलता, वो जगह नहीं मिलती आपको डिस्कशन की। तो कंट्रोल सिस्टम बना रहता है।

जबकि अगर आप, यहां क्वेश्चन वाली कैटागोरी मे आते हैं, जो नेचुरलिस्टिक ट्रेडिशन हैं, तो वहां पर क्वेश्चन पूछे जाते हैं और वहाँ पर आप कंट्रोल नहीं कर सकते है। इसको अगर हम, सिर्फ मार्किट की सेंस मे कॉमपैयर करके देखे ना तो हमारे देश मे कानून है ‘एम्. आर. टी. पी.’ एक्ट (मोनोपोलिस्टिक एंड रेस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसेज) एक्ट, अब वो क्यों बनाया गया था? जो मैंने उसको पढ़ना शुरू किया तो उसमे उनका कहना है कि इकनॉमिक रिसोर्सइज किसी एक हाथ मे इकट्ठे ना हो जाए, इसलिए इस एक्ट को बनाया गया है। उसको आप पैगम्बरवाद से कभी हद तक कॉमपैयर कर सकते है। यहाँ पर एक कंट्रोल करने की टेन्डेन्सी है। अगर आप दोनों को एज आ मार्किट कॉमपैयर करने की ट्राई करे, तो प्राकर्तिक या नेचुरल वाले मे क्या कह रहे है कि अगर कोई पेड़ है आप पेड़ को पूज सकते हो, नदी है आप नदी को पूज सकते हो, वर्षा है आप उसको पूजा कर सकते हो, किसी को नहीं करोगे तो भी कोई कुछ नहीं कहने वाला, चाँद की पूजा करनी है, तारों की पूजा करनी है वो कर सकते है। तो एक ओपन मार्किट है।अब, अगर मैं एक बड़ा स्मार्ट बिज़नेसमेंन हूँ, तो मे चाहुँगा मेरे पास ऐसा प्रोडक्ट हो जो ओर किसी के पास नहीं है। वो पैगम्बरवाद मे बड़े बिउटीफुल्ली काम किया है उस केस मे कि जो चर्च है उसका कहना है कि एक अकेला ही प्रोड्कट है और वो हमारी ही दुकान पे अवेलेबल है। के आप चर्च मे आएंगे तो जीससक्राइस्ट हमारे थ्रू ही आपको मिलने वाला है। तो ‘इन आ बिज़नेस वे, इट इज वैरी स्मार्ट, के आपने बाकी सारा कुछ बंद कर दिया और बंद भी कैसे किया, बाइबिल मे ये बड़े क्लियरली मेंशनड है कि जो तारों की पूजा करेगा, चाँद की पूजा करेगा, सूरज की पूजा करेगा, तो आप उसको मार सकते है।

उसको मार देना चाहिए। ‘व्हिच इस वैरी इनोवेटिव वे ऑफ़… डिस इस इन ओल्ड टेस्टामेंट’, अब ये कॉम्पिटिसन को खतम करने का बड़ा स्मार्ट वे है। जो 2000 साल पहले उन्होंने बड़े स्मार्टली बनाया था और आज भी चल रहा है। तो अगर हम इसको एक मार्किट शिनारिओ मे कमपेयर करते है तो अगर आप बिज़नेसमेन है और आप इब्राहमिक हैं तो आपके लिए फ़ायदा ही फ़ायदा है इसमें। लेकिन इसमें जो कंस्यूमर है वो लॉस मे रहने वाला है क्यूकि कंस्यूमर के लिए सिर्फ एक ही प्रोडक्ट अवेलेबल रह जाएगा और उसको झक मार के उसीमे जाना पड़ता है।तो डेट इज हाउ, जो पैगंबरवाद है वो कंट्रोल वाले सिस्टम को प्रमोट करता है। ऑन दी अदर हैंड, जो नेचुरलिस्टिक हैं वो एक ओपन मार्किट को परमोट करते हैं। फिर इसको आप ऐसे कमपेयर कर सकते हैं, आजकल एक वर्ड बड़ा कॉमन चलता है ‘प्लुरलिज़्म’ का, की हमे प्लूरिस्तिक होने की जरुरत है। तो जो प्राकर्तिक वे ऑफ़ थॉट है, जो प्राकर्तिक आइडियोलॉजीस है, उनका.. उनमे इन्हेरेंट है ये जो ‘प्लुरलिज़्म’ है। क्यूकि बहोत सारी देवीया हैं, बहोत सारे देवता है, तो ‘प्लुरलिज़्म’ गॉड के केस मे नहीं है, ह्यूमैनिटी के केस मे भी है। वहाँ पर ऐसी कोई कांसेप्ट नहीं है कि अगर आप इसको नहीं मानोगे तो आपको मार देना है, आपका गला काट देना है। ऑन दी अदर हैंड, दूसरी ओर, ‘प्लुरलिज़्म’ के बिलकुल अपोजिट है जिस्से ‘मोनोकल्चर’ कहते हैं। की एक जैसे कुरता, एक जैसा पजामा, एक जैसी टोपी, सारे पहनेगे या एक ही तरह की टाई लगाएगे, एक ही तरह की शर्ट पहनेगे, तो वो अक्सेप्टेबल बिहैवियर है, दूसरा अक्सेप्टेबल नहीं है। ह्यूमनस की एक तो हमने देखा था कि कैसे डिवीज़न क्रिएट किया जाता है। सेकंड है कि हर ह्यूमन की स्टेट क्या है या कैसी है। इसमें जो नेचुरल वाले हैं, उनका क्लेम और जो पैगम्बरवादी है उनका क्लेम एक दूसरे को बिलकुल कनफ्लिक्ट करता है। यहां पे नेचुरल वालो मे कहना है कि सच्चिदानंद है। के उसके अंदर ही सारे का सारा आनंद प्रेसेंट है। सिर्फ उसे उसको एक्स्प्लोर करना है। तो सच्चिदानंद वाली स्टेज पे पहुंच जाएगा। के उसको ना तो सुख परेशान कर सकते है ना दुःख परेशान कर सकते है। दूसरा इससे बिलकुल रिवर्स है। के ‘एवरीबॉडी इज आ बोर्न सिन्नर’ क्यूकि वो आदम और ईव ने एक सिन किया था, एक पाप किया था। और सारी उसीकी संतान है तो सारे पापी है। तो उन्होंने जब से उनका जन्म हुआ है वो पाप का बोझ ढो रहे है।

अब इन दोनों मे एकतरफ उनको कहना है कि सच्चिदानंद है। पर सच्चिदानंद भी कंडीशनल है कि अगर आप उस रास्ते पे चलते है, आपकी एथिक्स, आपका बिहैवियर ठीक है, तब तो आपको सच्चिदानंद वाली स्टेज को अटैन कर सकते हो। दूसरी ओर है के आप सिन्नर हो, आप इस स्टेट को अटैन करहि नहीं सकते। इसको आप ‘कर्म थ्योरी’ के साथ भी जोड़ सकते है कि कर्म सिद्धांत बोलता है की अगर आपके कर्म अच्छे है या कर्मो से ऊपर उठ जाते है, तब तो आप सच्चिदान्द वाली स्टेज मे जाते है। दूसरी ओर है कि आप पापी हो, क्यूकि आप आदम और ईव की संतान हो। और उन्होंने पाप किया था। वो आप तक ट्रांसमिट हो के आया है। यहाँ जो मेजर डिफरेंस है के जो नेचुरल थॉट प्रोसेस है उसके अंदर मेरे कर्म जो है उनको मैं ही भुगतूँगा। आप उनको नहीं भुगत सकते। दूसरी ओर आपने कोई पाप नहीं किया लेकिन आप पहले से उन पापों को भुगत रहे हैं।

दूसरा डिफरेंस कहाँ आता है? के अगर मैंने कुछ गलत किया है तो उसकी सजा भी मुझे ही मिलेगी। उसके दुःख भी मे भोगने वाला हूँ। पैगम्बरवाद मे है के आप पापी हो, पाप आपने किए है, लेकिन आपके जितने पाप थे वो जीससक्राइस्ट ने वहाँ पर सूली पे लटक के धो दिए हैं। तो, इन फैक्ट ये गांधी जी के मैं उस दिन कुछ नोट्स पढ़ रहा था। उन्होंने अपना जो क्रिस्चैनिटी के साथ कनफ्लिक्ट हैं वो एक्सप्लेन किया था। तो उन्होंने एक आदमी का एक्साम्पल दिया स्पेशल्ली के वो मुझे कन्वर्ट करना चाहते थे ( सब लोग ये क्रिस्चैन थे )तो ये बोले के “मैं कन्वर्ट नहीं होना चाहता “। तो उन्होंने बाइबिल दी। तो बोले मैं बाइबिल पढता रहा, लेकिन मैं बोर होने लग गया था। लेकिन ‘आई जस्ट वेंट थ्रो इट, जस्ट टु शो’ कि मैंने बाइबल पढ़ी है। तो उनमें से एक ने बोला (गांधी को) के आपका ये जो रिलिजन हैं ये बकवास है। के आपको हर रोज मेहनत करनी पड़ती है, के आपको साधना करनी पड़ती है। हमारा वाला देखो कितना अच्छा है, बस मुझे एक्सेप्ट करना है कि ‘जीससक्राइस्ट इज माय सेवियर’। अब मैं जो मर्ज़ी क्राइम करता रहुँगा उसने मुझे बचा लेना है। और वो गांधी जी अपनी डायरी मे लिखते हैं कि उसने वो कर के भी देखा। वो बहोत सारे ऐसे इंडिसकशंस कर रहा था और उसको कभी उसकी जो अंतरात्मा है वो धिक्कारती नहीं थी। वो बोलता था कि “जीससक्राइस्ट ने मुझे सेव कर रखा है”। उस हिसाब से अगर हम पुरे सेल्फिश होके देखे तो शायद उस केस मे भी हम इसको एक्सेप्ट कर सकते हैं कि किसी को पाप करने का मन करता हैं लेकिन क्लीन कौन्सियस रखनी है तो बोलो कि जीससक्राइस्ट मुझे बचा लेगा। तो ‘डिस कैन आल्सो बी डन’।

ये शायद मे डिसकस कर चूका हूँ कि अगर हम अपने कर्मो को ठीक रखते हैं, साधना के मार्ग पे चलते है। तो जो ब्राहमी स्थिति है, जिसको हम सर्वोच्च मानते हैं, जीवन मुक्त कि स्थिति मानते हैं, वो तो हम प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन दूसरी साइड पे, एनलाइटनमेंट जैसा कोई आप एक्वायर नहीं करते वहां। कोई मोक्ष जैसी या ‘कैवलले ‘जैसी कोई स्टेज नहीं है। सिर्फ आप हैवन या हैल मे जा सकते हैं, वो भी उस दिन अल्लाह या जो जीसस है वो जज करेंगे कि किसको हैवन मे भेजना है और किसको हेल मे भेजना है। नेक्स्ट इज, के जो हम देखते है, सृस्टि देखते है या यूनिवर्स देख़ते हैं अपने चारो ओर। उसकी नेचर क्या है? के वो कब शुरू हुआ था? कब खत्म होगा? क्यूकि हर किसी के माइंड मे, इंडीविजुअली भी आता है, और एज आ सोसाइटी भी कभी ना कभी माइंड मे ऐसे क्वेश्चन उठते हैं कि सारा कुछ जो हो रहा है ये क्यों रहा है?  किसने बनाया था? कब बनाया था? तो इसमें, ये जो दोनों थॉट प्रोसेस हैं वो बिलकुल अलग है एक दूसरे से। जो प्राकृतिक वाले हैं,  उनका कहना है कि सृस्टि का ना तो कोई आदि है ना कोई अंत है। हमेशा से थी और हमेशा चलती रहेगी। जो पैगंबरवाद है, उसमे इसपे बहोत ज्यादा क्लैरिटी है उनका कहना है कि 23 अक्टूबर4004 बी. सी. मे, ऑलमोस्ट आज से 6 -7000 साल पहले, ये दुनिया बनाई गयी थी और जो एन्ड है वो बस आने वाला है। वो जब जीससक्राइस्ट का टाइम था 2000 साल पहले तब भी आने वाला था और अब भी जस्ट आने वाला है। नेक्स्ट है, के जो सृस्टि है इसकी रचना कैसे होती है? कभी इसका एन्ड आता है या नहीं आता, तो अनादि और अनंत होने का मतलब क्या है?

कि यहाँ पर कभी एक सृजन हुआ, फिर जीवन स्टार्ट होता है, फिर उस जीवन का विलय हो जाता है और फिर से साइकिल चल पड़ती है। के एक साइक्लिक प्रोसेस है की कभी ख़तम नहीं होने वाला है। पैगंबरवाद मे एक लीनियर फ्लो है, के पहले गॉड ने इसको बनाया, 6 दिन मे, 7वे दिन यहाँ पर जो लिविंग ऑर्गनिज्म्स थे उनको रखा, तब लाइफ शुरू हो गयी। उसके बाद एक जजमेंट डे आएगा या कयामत की रात आएगी। उस दिन सारे मर जायेंगे और उसके बाद हैवन मे जाएंगे या हेल मे जाएंगे,  उस दिन डिसिजन हो जायेगा। फिर वो वैसे ही कंटिन्यू करने वाला है। इसमें जो एक डिफरेंस, इंडिरेक्टली हमे दिखाई देता है, हमारे यहाँ मानना हैं कि जो शरीर है एक बार आत्मा निकल गयी तो मिटटी है, ये ख़तम हो जाएगा। ये डिफरेंस मे अपनी एक जो मैंने एक्सपीरियंस किया उसके हिसाब से बताता हूँ, एक मूवी थी ‘गॉडफादर’ नाम की। जब हम छोटे थे बड़ी पॉपुलर थी वो, तो उसमे एक अंडरवर्ल्ड का डॉन होता है। वो किसी के लिए काम करता है बहोत बड़ा। जिसके लिए काम करता है वो अंडरटेकर था, जिसका एक फ्यूनरल पार्लर चलता था। तो जब ये डॉन उसका काम किया तो उसने पूछा की बताइये मे आपके लिए क्या कर सकता हूँ? तो डॉन ने बोला ‘’जिस दिन मुझे जरूरत पड़ेगी मैं तुम्हारे पास अपने आप आ जाऊंगा’’। तो कुछ टाइम बाद वो डॉन जो बेटा था,  उसका गैंगवॉर मे गोलीया मार के मर्डर हो जाता है। तो क्यूकि बहोत सारी गोलिया मारते हैं मशीन गन से तो उसका फेस वगैहरा सब खराब हो जाता है। तो अपने बेटे की डेड बॉडी लेके वो इस फ्यूनरल पार्लर मे जाता है। तो फिर वो बताते है कि बहोत सूंदर काम किया है। उसके मुँह को फिर से स्ट्रक्चर करके, अच्छा बनाके, फिर उसको कॉफिन मे डाल दिया। तो मैं बहोत छोटा था, मुझे समझ नहीं आया कि ये क्या है? कि अगर वो डॉन चाहता, तो उससे बहोत सारे पैसे भी ले सकता था। लेकिन उसने इतना निक्कमा सा काम क्यों किया? कि जो मिटटी हो चूका है उसपे मेकअप कराने का फ़ायदा क्या है? तो जब ये मैंने इन रेलीजेंस को पढ़ना शुरू किया तो मुझे समझ मे आया कि इनका मानना ये है के जब ये जजमेंट डे आएगा, तो सारे मुर्दे अपनी कब्रों मे से उठ कि खड़े होंगे और उनको जज किया जाएगा। तो पहले मे इसको कैलकुलेट करने लगा के 7अरब तो अभी लोग हैं, जो गुजर चुके हैं.. तो ये तो खरबो मे संख्या जाएगी। उनका कहना है कि सारे एक लाइन मे लगे हुए होंगे और एक-एक कर के सबको बुलाएँगे।

एक लेफ्ट मे जाएगा हैवन वाला, राइट मे जाएगा हेल वाला।तो वो मैं लॉजिस्टिकली कैलकुलेट करने लगा तो मुझे लगा ये थोड़ा कुछ इसमें गड़बड़ है। लेकिन एनीवे, मैं मेंन पॉइंट पे वापस आता हूँ, तो ‘आई वास् वॉन्डरिंग’ कि क्यों, उन्होंने, मरे हुए का मेकअप कराने को इतनी इम्पोर्टेंस क्यों दे रहे हैं। तो उनका कहना है कि अब  जब वो हैवन मे जाएगा तो वहाँ पर भी तो उसको एन्जॉय करना है। वहाँ पर उसके फेस की इम्पोर्टेंस होने वाली है, उसकी वैल्यू होने वाली है। तो ये इतनी, इतनी शुक्ष्म भी कह सकते है इसको। लेकिन इतनी सुरप्राइसिंग चीज़े हैं जो हमे लग सकती है कि मैटर नहीं करती। पर उनके पैगम्बरवाद मे ये बहोत ज्यादा मैटर करती है। फिर जब सृस्टि के सृजन की बात आती है के जो क्रिएटर है वो कौन है? कैसा है? उसमें भी एक मेजर डिफ्रेंस है के जो नेचुरल है, उनका कहना है कि जो क्रिएटर है वो जेंडर न्यूट्रल हो सकता है, अर्धनारीश्वर भी है, नर भी हो सकता है, नारी भी हो सकता है, इसमें कोई फिक्सेशन नहीं है। जबकि वहाँ पे बड़ा क्लियर है कि जो गॉड है वो मेल है और इसीलिए जो मेलस हैं वो ज्यादा सुपीरियर हैं एज कॉम्पेयर टू फीमेल्स। ये मेरी ओर से पूर्वपक्ष था, पैगम्बरवाद का।


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