धर्मो रक्षति रक्षितः। Dharmo Raksati Raksitah.

Dharma protects those who protect it.

– Veda Vyas, Mahabharat

इसाई पंथ और भारत – डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन का व्याख्यान


संपूर्ण विश्व में प्रेम व शान्ति का स्वरुप माने जाने वाले इसाई धर्म के विस्तार का इतिहास रक्त से सना है, ये तथ्य कम ही लोग जानते हैं| यूनान, रोम व माया जैसी कई प्राचीन संस्कृतियाँ इसाई मिशनरियों के हाथों जड़ से मिटा दी गयीं| अनगिनत देशों की भोली-भाली प्रजा का जबरन धर्मान्तरण किया गया और जो न माने उन्हें अत्यंत बर्बरता से प्रताड़ित कर मौत के घाट उतार दिया गया|

भारत में सर्वप्रथम इसाई शरणार्थी बन कर आये| परन्तु पुर्तगालियों के आगमन के साथ ‘गोवा इन्क्विज़िशन’ नामक क्रूरता का जो वीभत्स नरसंहार शुरू हुआ वो दिल दहलाने वाला था| उसके पश्चात् फ्रांसीसी, डच, अंग्रेज़, ये सभी विदेशी इसाई धर्म के विस्तार के लिए निर्दोष भारतवासियों पर अत्याचार करते रहे|

अपने सृजन व्याख्यान “इसाई पंथ और भारत” में श्री सुरेन्द्र जैन बड़ी स्पष्टता से हमें अवगत कराते हैं कि किस प्रकार आज़ादी के पश्चात् इसाई मिशनरी छल-बल, कपट, लालच और धोखाधड़ी द्वारा बे-रोकटोक धर्मान्तरण में जुटे हैं; किस प्रकार विदेशों से अपार धनराशि धर्मान्तरण के लिए आ रही है; किस प्रकार उनकी पूरी कार्य प्रणाली धूर्तता पर आधारित है; और कैसे उनके संदिग्ध, अवैध और काले कारनामे उनका वास्तविक चरित्र दर्शाते हैं|

Transcript: –

चाहे पुर्तगाली आए हो, चाहे फ्रेंच आए हो, चाहे डच आए हो, चाहे ईस्ट इंडिया कंपनी आई हो, यह सब अपना ईसाई संप्रदाय के साम्राज्य का विस्तार करने के लिए हिंसा का प्रयोग करते रहे, सब प्रकार का षड्यंत्र करते रहे।

आज़ादी के बाद का इतिहास भी हम देखें, तीन कमिशन बैठी है अभी तक इनके ऊपर। धोखाधड़ी से धर्मांतरण, लालच से धर्मांतरण और बल प्रयोग से धर्मांतरण यह सब गैरकानूनी है, ऐसे धर्मांतरण अगर किया जाता है तो यह गलत है। संविधान हमें अपना धर्म मानने की आज़ादी देता है पर पर धर्मांतरण का अधिकार नहीं देता है।

आदरणीय बंधुओं और बहन जी पिछले दिनों दो-तीन उदाहरण ऐसे हुए जो केवल भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में चर्चा का विषय बना।

एक नन सामने आती है और वह नन कहती है  मेरे साथ पाँच पादरियों ने लगातार ढाई वर्ष तक दुष्कर्म किया है, मेरा यौन शोषण किया है। कन्फेशन बॉक्स में मैंने कुछ बात कही, जिस पादरी के सामने कहीं उस पादरी ने यौन शोषण किया, जिस से शिकायत की फिर उसने यौन शोषण किया।

उसके साथ जुड़ी हुई एक घटना आती है रांची के संबंध में। रांची में मदर टेरेसा द्वारा स्थापित अनाथालय जिसको निर्मल ह्रदय नाम दिया गया वहां किस तरह 280 बच्चों का व्यापार किया गया और उसकी गहराई में जाने पर बहुत ही आश्चर्यजनक और बहुत ही चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं।

वहीं दूसरी ओर पोप के द्वारा भी ऐसे ही संबंधित विषयों पर कुछ बयान दिए गए तो स्वाभाविक तौर पर पूरा विश्व जानना चाहता है यह है क्या ? क्योंकि इनकी छवि तो एक अलग प्रकार की है।

हमारी फिल्मों में भी यही दिखाया जाता है कि कोई अगर चरित्रवान व्यक्ति है, कोई अगर शांति का, कल्याण का, मसीहा है, हर जगह किसी की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहता है तो वह एक सफेद गाउन पहना हुआ गले में एक क्रॉस लटकाया हुआ पादरी ही होगा। कोई पंडित या कोई और इस तरह का कृपावन या इस तरह का कल्याणकारी चिंतन करने वाला नहीं हो सकता।

संपूर्ण विश्व के मीडिया का एक दल उनके बारे में जानबूझकर यही दर्शाता है, उनके निजी स्वार्थ भी हो सकते हैं।

यह उनकी अज्ञानता भी हो सकती है, मैं उनके नीयत पर सवाल खड़ा करूं यह अधिकार मेरा नहीं है। लेकिन वह यही दर्शाता है कि अगर शांति मिलेगी तो किसी चर्च में ही जाकर मिलेगी, किसी  नन या पादरी के पास बैठकर ही हम को मन को भी शांति मिलेगी और कहीं ना कहीं कल्याण का मार्ग भी वहीं से होकर गुजरता है।

लेकिन जरा गहराई में हम जाएंगे, थोड़ा सा इतिहास इनका पढ़ेंगे तो हम सब को जान कर आश्चर्य होगा की वास्तविकता बिल्कुल इसके विपरीत है। ईसाइयत का विस्तार कैसे होता है संपूर्ण दुनिया में पहले यह जानना जरूरी है।

कुछ लोग उनके इतिहास को जानते हुए भी कहते हैं कि वह पुरानी बात हो गई ध्यान, देना वह पुरानी बात आज भी इनके चरित्र में झलकता है। वह कहीं भी आज  उससे दूर हो गए ऐसा नहीं है।

ईसाइयत का विस्तार पहले तोपखाने और सेना के दम पर होता था । आज ईसाइयत का विस्तार विदेशी धन धोखाधड़ी, जालसाजी और कहीं कहीं जबरदस्ती इन सब माध्यमों से आज इनके धर्म का विस्तार हो रहा है।

यह बिल्कुल चीज ऐसी कुछ ऐसी है जिसके बारे में मैं पूरी तरह से एविडेंस के साथ आपके सामने आ रहा हूं।

और इसीलिए  इसके संबंध में अगर मैं यह कहूं इस्लाम के बारे में यह बात कही जाती है कि इस्लाम की सीमाएं रक्त से खींची गई। मैं पूरे विश्वास के साथ यह बात करना चाहता हूं कि ईसाई धर्म की सीमाएं मानव रक्त के नदियों से खींची गई, ईसाई धर्म की नींव मानव के लाशों से भरी गई है।

विश्व की कई महत्वपूर्ण संस्कृतियों यूनान, रोम, माया, विशेषकर यह तीन महान संस्कृति या ईसाई मिशनरियों के द्वारा ही नष्ट की गई । मैं कुछ तथ्य आपके सामने रखना चाहूंगा, मैं शुरू करता हूं अमेरिका से।

कहां जाता है कोलंबस भारत की खोज में अमेरिका पहुंचा था और वहां के लोगों को रेड इंडियंस नाम से संबोधित किया था, लेकिन उस समय का इतिहास अगर हम पढ़ कर देखें तो यह समझ में आएगा कि जो रेड इंडियंस थे वह मूलतः समाप्त हो गए हैं, उनकी पूरी प्रजाति नष्ट कर दी गई है आज एक भी रेड इंडियंस नहीं है, कहां गए वे लोग ?

80 लाख से अधिक थे रेड इंडियन, और लोग भी थे और मैं यह दावे के साथ कहता हूं, संपूर्ण ईसाई जगत को चुनौती देते हुए कहता हूं कि 80 लाख से अधिक लोगों की निर्मम हत्या ईसाई मिशनरियों के द्वारा अकेले अमेरिका में की गई। अब हम अमेरिका से थोड़ा नीचे आते है जिसको हम लैटिन अमेरिकन कंट्रीज कहते हैं।

ध्यान रखना अलग-अलग अलग पोप अलग अलग समय पर वहां पर किए गए अत्याचारों के लिए बार बार माफी मांग चुके हैं। इसका मतलब अत्याचार किया है उन्होंने, यह मान रहे हैं और उसके लिए माफी मांगा है। पहला महा पाप किया है माया संस्कृति जो वही की संस्कृति है और आज माया संस्कृति के जो अवशेष मिल रहे हैं तो ध्यान में आता है कितनी समृद्ध संस्कृति रही है, हजारों लाखों साल आगे के कैलकुलेशंस उस संस्कृति के अंदर जो चीजें मिल रही है उनके आधार पर किया जाता है। मानव समाज के कई अनसुलझे रहस्य का रहस्य उद्घाटन माया संस्कृति के माध्यम से किया जा सकता है। उनका कैलेंडर आज भी चर्चा का विषय रहता है।

माया संस्कृति संपूर्ण रूप से समाप्त हो गई तो इसका उत्तरदाई अगर कोई है तो वह ईसाई मिशनरी है। लेकिन अमेरिका के अलग-अलग जितने भी देश है उनका अलग-अलग बताने की जगह मैं उन सब का जोड़ करता हूं तो यह संख्या आठ करोड़ जाती है। आठ करोड़ से अधिक जो उन अमेरिकन देशों के मूल नागरिक है उन सब का सफाया कर दिया गया क्योंकि उन्होंने पहली ही स्टेज में ईसाइयत को मानने से मना कर दिया था।

ऑस्ट्रेलिया, आप जैसे प्रबुद्ध लोग यहां पर बैठे हुए हैं, तो कुछ दिन पहले वहां के जंगलों में घूमने पर कुछ लोग मिले तब ध्यान आया वह वहां के मूल निवासी है, पहले सिर्फ वही रहते थे आज कहां गए ? जंगल में दो चार ही सिर्फ मिलेंगे।ध्यान आ रहा है ऑस्ट्रेलिया के जो मूल निवासी थे उनका संपूर्ण सफाया ईसाई मिशनरियों ने किया है।

अफ्रीका अफ्रीका के बारे में तंजानिया के जो राष्ट्रपति हैं उन्होंने तो कहा भी था- ईसाई पादरी हमारे पास है उनके पास बाइबल थी हमारे पास जमीन थी। हमको आंखें बंद करने के लिए कहा गया और जब हमने आंखें खोला तो पाया कि हमारे पास बाइबल है और जो हमारी जमीन थी वह उनके पास है। उनकी भाषा वह नहीं समझते थे, जब उन्हें कहा गया कि ईसाई बन जाओ तो हम तुम्हें छोड़ देंगे । तो जब भाषा ही नहीं समझते थे तो अफ्रीकी लोग क्या जवाब देते। उन्होंने यह समझ कर कि वो इंकार कर रहे हैं हमारी बात को स्वीकार नहीं कर रहे उन सब का कत्लेआम किया। इस घटना के लिए पोप बार-बार माफी मांग  चुके हैं और एक अनुमान से मैं यह कह सकता हूं कि पाँच करोड़ से अधिक लोगों का नरसंहार अफ्रीका के अंदर हुआ।

अब हम अफ्रीका से यूरोप की तरफ आते हैं जहां से यह सब शुरू हुई। कहां जाता है हिटलर को नफरत थी जिप्सी और से यहूदियों से और उनका कत्लेआम किया। क्यों किया ?

15 लाख से ज्यादा जिप्सी और 60 लाख से ज्यादा यहूदी अकेले हिटलर ने मारे। ईसाइयों में एक मान्यता थी कि जीसस की हत्या में यहूदियों का हाथ था।  लिखित दस्तावेजों में यह पाए जाते हैं कि हिटलर ने यही सोच कर कि ईसाई धर्म की सेवा कर रहा हूं, जीसस के हत्यारों से बदला ले रहा हूं, यही भावना के साथ जर्मनी के अंदर हिटलर ने यहूदियों का नरसंहार किया। लेकिन केवल हिटलर ने किया हो ऐसा नहीं है । संपूर्ण यूरोप में 350 साल तक लगातार यहूदियों का दमन किया गया, उनका नरसंहार चलता रहा और इसीलिए इसराइल से जब चीफ रब्बी आए थे जो उनके प्रमुख संत थे तो प्रधानमंत्री निवास स्थान पर अल्पाहार के समय उन्होंने कहा था कि भारत उनके लिए घर है कोई बाहर का स्थान नहीं क्योंकि 350 साल तक संपूर्ण विश्व में उनका दमन हुआ पर सिर्फ भारत में ही उन्हें सम्मान मिला। और जो मैंने संकेत किया था यूनान की संस्कृति, रोम की संस्कृति को भी नष्ट किया इन लोगों ने।

रोम के बारे में तो कहा जाता था उनके पास ज्ञान का अपार भंडार था और ईसाइयों का तो आप जानते हैं जो चीज बाइबल में नहीं है वहीं के लिए बेकार है, इसीलिए तो गैलीलियो की हत्या की। ऐसे 50 उदाहरण और मिल जाएंगे पर अभी मैं उस पर नहीं जाना चाहता। इन्होंने रोम के पुस्तकालय में आग लगा दी और वह पुस्तकालय की आग कई महीनों तक जलती रही। यह दो संस्कृतियों को नष्ट की और जो भी उन्हें स्वीकार नहीं करता था उनका कत्ल करने में इन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता था। एक इनके यहां परंपरा रही है विच हंटिंग की, जो महिला इनकी बात ना माने इन के मतलब पादरी की उसे विच यानी चुड़ैल घोषित कर दिया जाता था। महिलाओं के बारे में इनका क्या दृष्टिकोण है यह मैं विस्तार से थोड़ा आगे चल कर बताता हूं। लेकिन किसी भी महिला को चुड़ैल घोषित करके उसकी निर्मम तरीके से हत्या करना और तरीके भी कैसे निर्मम होते थे। जलते हुए, उबलते हुए तेल के कढ़ाई लाकर डाल देना, जलती हुई चिता पर बैठा देना।

एक पहिया होता था पहिया के एक तरफ कांटे होते थे और दूसरी तरफ वह सामान्य रहता था। सामान्य पहिए में बांधकर कांटे वाले पहिए  के सामने ऐसे घुमाते थे कि कांटे पूरे शरीर को छेद देते थे , ऐसा लगता था जीसस के बारे में कहा जाता है कि उनके माथे और हाथ पर कील ठोकी गई उससे कहीं अधिक पीड़ा का अनुभव उन महिलाओं को होता था। यह जो विच हंटिंग की बात है यह लगभग 300 साल तक चली। 1450 से 1750 तक और इन 300 सालों में लगभग 200000 से अधिक महिलाओं को इन्होंने चुड़ैल घोषित करके मौत के घाट उतार दिया।

अब हम जरा भारत में होते हैं, यह तो विश्व में ईसाइयत का प्रचार कैसे हुआ यह हमने देखा । भारत में ईसाइयत का प्रचार कैसे हुआ यह एक बहुत आश्चर्यजनक तथ्य है ईसाई मिशनरी भारत में शरणार्थी के तौर पर आए थे। सीरिया के ईसाई मालाबार के अंदर अपने ही धर्म के लोगों से प्रताड़ित होते थे।

उस समय विश्व में ज्यादातर जगहों पर खासकर यूरोप में ईसाई धर्म का ही वर्चस्व था और इसलिए वह भारत आए। राजा चेरामन ने केवल शरण ही नहीं दिया अपितु अपने धर्म का स्वतंत्रता पूर्वक पालन करने का केवल अधिकार ही नहीं दिया आपको जानकर खुशी होगी कि भारत में पहला चर्च एक हिंदू राजा ने बनवाया था। उन्हें बहुत सम्मान दिया गया लेकिन 1498 में वास्कोडिगामा आता है। आप लोग गोवा गए होंगे वहां वास्को के नाम से बहुत सारी जगह है। वह यहां पर सिर्फ पर्यटन के लिए नहीं आया था। वक्त पुर्तगाली राजा के आदेश पर भारत की खोज में निकला था। पुर्तगाली राजा को पोप ने आदेश दिया था कि भारत को ढूंढो और वहां धर्मांतरण करो। वह तोपों के साथ घूमने के लिए नहीं आया था। आश्चर्य की बात यह है कि जब वह अपनी सेना लेकर भारत आया तो जिन सीरिया के ईसाइयों को हमने शरण दिया था वह वास्कोडिगामा के साथ खड़े हो गए। वह सब मिलकर नरसंहार करते हैं और धर्मांतरण करते हैं। यह कुछ मात्रा में होता रहा लेकिन 1542 में जब सेंट जेवियर आते हैं, सेंट शब्द उनके लिए ही ज्यादा प्रयोग किया जाता है जिन्होंने ज्यादा धर्मांतरण किए हैं। सबसे अधिक अत्याचारी इनके यहां सबसे अधिक पूज्य व्यक्ति रहा है।

जब सेंट जेवियर भारत आते हैं, तो थोड़े दिन में उनके साथ फौज आती है और उसके बाद हिंसा का नंगा नाच शुरू हो जाता है। वह गोवा इनक्विजिशन की स्थापना करते हैं (धर्म न्यायालय)। गोवा इनक्विजिशन की स्थापना करने का उद्देश्य है यही था कि जो ईसाई बनने से इंकार करता है, उस इनक्विजिशन के माध्यम से उसको सजा मिलेगी। सब को सजा मौत की मिलती थी और मौत भी बहुत प्रताड़ित तरीके से किया जाता था।

दो तीन उदाहरण मैंने दिए है, आज उन्हें तथ्यों के साथ दिखाया जा सकता है उनकी तस्वीरें उपलब्ध है। समय की कमी के कारण मैं आज इस विषय पर विस्तार से नहीं जा रहा। पूरी पुस्तक गोवा इनक्विजिशन में हुए अत्याचारों के ऊपर 2 लोग छाप चुके हैं।

पांडिचेरी की तरफ हम चलते हैं। वहां 50-60 मंदिर एक साथ तोड़ दिए जाते हैं और वह दृश्य देखकर सेंट जेवियर कहता है कि आज मेरी आंखों में ठंडक पड़ गई है। भाइयों बहनों ढाई सौ साल तक इस गोवा इनक्विजिशन के कारण समस्त दक्षिण भारत सीसकता रहा, रक्त के आंसू रोता रहा।

आज आप जाएं वहां पर केवल पर्यटन स्थल ही नहीं घूमे थोड़ा अंदर में भी देखें। आपको वहां पर एक हथकतरा खंब दिखाई देगा। यह खंबा सेंट जेवियर के समय का है। जो ईसाई बनने से इनकार करता था, उस खंबे के पीछे उसके हाथ बांध करके उसे खड़ा कर देते थे । महीने डेढ़ महीने तक उसे खाना पानी नहीं दिया जाता था और फिर उसके बाद उससे पूछा जाता था कि क्या वह ईसाई बनने के लिए तैयार है। अगर वह धर्मांतरण के लिए तैयार नहीं होता था तो उसके हाथ काट दिए जाते थे दोनों और इसीलिए उस खंभे का नाम हथकतरा खंभ पड़ा पड़ा।

वहां एक बाग है पास में, मैं कुछ दिन पूर्व गया मुझे बताया गया कि उसे वहां का जलियांवाला बाग कहते हैं । गांव के सब लोगों को उस बाग में एकत्रित किया गया और पूछा गया कि धर्मांतरण करते हैं कि नहीं गांव के लोगों ने मना कर दिया और वहां सब लोगों को गोलियां मार दी गई। चारों तरफ सिपाही खड़े थे तो लोग बचके नहीं भाग सके, सब को गोलियों से मार दिया गया। वह बाग आज भी उपस्थित है वहां पर।

चाहे पुर्तगाली आए हो, चाहे फ्रेंच आए हो, चाहे डच आए हो, चाहे अंग्रेज आए हो, चाहे ईस्ट इंडिया कंपनी आई हो यह सब अपना ईसाई साम्राज्य के विस्तार के लिए ही हिंसा का प्रयोग करते रहे । सब प्रकार के षड्यंत्र करते रहे। बस एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है भारत के साथ पूरी दुनिया में जहां कहीं भी ईसाइयों ने अत्याचार किए हैं वहां के लिए पोप बार-बार माफी मांग रहे हैं। क्यों ? क्योंकि वहां का समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ खड़ा है और वह कहते हैं कि हम आपके साथ तब जुड़ेंगे जब आप हमारे ऊपर किए गए अपने अत्याचारों के लिए माफी मांगेंगे। कभी मैक्सिको के लिए, कभी चिल्ली के लिए कभी अफ्रीकन देशों के लिए कई पोपो ने बहुत बार माफी मांगी है।

लेकिन भारत में जो अत्याचार किए उसके लिए  माफी मांगने की बात छोड़ो उनको स्वीकार तक नहीं किया कारण भारत में जो ईसाई थे या है वह सभी राष्ट्रीय स्वाभिमान से ओतप्रोत नहीं है। ईसाइयों के अंदर ऐसे लोग भी हैं जिनके देश भक्ति पर कोई संदेह नहीं कर सकता। राष्ट्र के प्रति समर्पण उनके मन में अगर मेरे से कम होगा मैं यह सोचता हूं तो मेरे से बड़ा कोई बेवकूफ नहीं होगा। ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर जो ईसाई है वह पहले खुद को ईसाई और बाद में भारतीय मानते हैं और इसीलिए वह पोप से क्षमा मांगने को नहीं कहते हैं।

आज मैं इस मंच से, जहां से पूरे विश्व में यह आवाज जा रही है,  मै पोप से यह आग्रह करता हूं कि भारत में किए गए हुए अत्याचारों के कारण माफ उन्हें माफी मांगनी चाहिए। यहां की हुई अत्याचारों की संख्या यूरोप में या अन्य कहीं की हुई अत्याचारों से कम नहीं है।

आज भी मिजोरम के अंदर 40000 रियांग लोगों को धकेल दिया है, मार के भगा दिया है। वह शरणार्थी बने घूम रहे हैं। कोई मणिपुर में है, कोई त्रिपुरा में है, कोई और कहीं है। तो किसी भी मायने में इनके षडयंत्र आज भी कम नहीं हो रहे है।

आज़ादी के बाद अगर हम देखें, तीन कमीशंस बैठी है इनके ऊपर। पहली कमिशन नियोगी कमीशन थी जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री जब रविशंकर शुक्ल हुआ करते थे उन्होंने बनाया। दूसरा महापात्र कमिशन, स्वामी लक्ष्मणआनंद जी की हत्या के बाद उड़ीसा में बनाया गया। तीसरा वधवा आयोग जो स्टेन्स  की दुर्भाग्यजनक हत्या के बाद उड़ीसा में बनाया गया। यह तीनो के तीनो लोग इन लोगों के क्या कारनामे हैं इसके ऊपर खुल कर लिखते हैं और इसीलिए महापात्र कमिशन की रिपोर्ट को तो छुपा दिया गया। नियोगी कमिशन की जो रिपोर्ट थी उसमें उन्होंने वास्तविकता में बहुत ही गहराई के साथ अध्ययन किया था। गहराई के साथ अध्ययन करने के बाद उन्होंने जो खोज निकाले हैं यह सुझाव दिए हैं वह बहुत ही आश्चर्यचकित करने वाले।

मैं दो-तीन चीजों पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। बहुत अधिक मात्रा में विदेशी धनराशि धर्मांतरण के कार्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है। लोगों को झूठे तौर से प्रभावित कर के और फरेब  से धर्मांतरण किया जा रहा है।

देसी और विदेशी मिशन द्वारा अधिकारियों को आश्वस्त करने के बाद भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण का कार्य किया जा रहा है। यह यहां की राजनीति को भी प्रभावित करते हैं। धर्मांतरण के कारण धर्मअंतरित हुए लोगों का समाज व राष्ट्र के प्रति भक्ति से मन धूमिल हो जाता है। धर्म परिवर्तन किए हुए लोगों का राष्ट्रभक्ति कम होने का खतरा होता है। यह सब बातें नियोगी कमिशन में लिखी हुई है।

इसीलिए स्वामी विवेकानंद कहते थे अगर एक व्यक्ति धर्मांतरण हो गया तो इसका यह मतलब नहीं है कि एक हिंदू कम हो गया या केवल एक ईसाई बढ़ गया, इसका केवल एक ही अर्थ है और वह कि भारत देश का एक दुश्मन अधिक हो गया। यह मैं नहीं कह रहा स्वामी विवेकानंद ने कहा है। और भी इस तरह की बहुत बातें हैं । वनवासी और हरिजन धर्मांतरण के लिए सबसे आसान शिकार होते हैं।

नियोगी कमिशन यह भी कहती है कि ईसाई मिशनरियों के खिलाफ जो मामले दर्ज हुए हैं वह साबित नहीं हो पाए हैं। इस तरह के अभियोग ईसाई मिशनरियों पर बहुत बार लग चुके हैं और यह इनका एक काम करने का तरीका है ताकि वहां के अधिकारियों को भी वह प्रभावित कर सके। नियोगी कमीशन की रिपोर्ट के पीछे उन 6 लोगों के हस्ताक्षर भी है जिन लोगों ने नियोगी कमिशन को स्थापित किया था।

अब मैं आपको जो बता रहा था कि आज़ादी के बाद के किए हुए अत्याचार । पिछले दिनों त्रिपुरा के बौद्ध संप्रदाय के कुछ लोग हमसे मिलने के लिए आए थे। उन्होंने कहा धम्मदीप इंटरनेशनल बौद्ध अकैडमी, उनके स्कूलों, कॉलेजों को आग लगा दी जाती है। विद्यार्थियों को बाहर निकाल दिया जाता है उन पर हमले किए जाते हैं। उनके गांव में उनके विद्यालय के जगह पर जबरदस्ती कब्जा करके चर्च बनाई जाती है। बौद्ध मंदिर व बौद्ध घरों को जला दिया जाता है और चर्च से प्रेरित आतंकवादी संगठन एलएफटी और त्रिपुरा टाइगर् फोर्स के आतंकवादी चकमाओं के घरों पर और मंदिरों पर हमला करते हैं, उनको आग लगाते हैं। हमारा डेलिगेशन राष्ट्रपति से मिलता है उन बौद्धों को लेकर एक सिक्ख भी पंजाब से हमारे साथ आते हैं। वह गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के सदस्य हैं और वह बताते हैं कि पंजाब के अंदर किस तरह से इन लोगों ने काम किया है।

पूर्वोत्तर से आए हुए हमारे भिखू डॉक्टर धर्मप्रिय, अरुण कुमार चकमा, नबकिशोर जमाटीया, श्रीरामपद जमाटीया जब चार लोग नॉर्थ ईस्ट से, राष्ट्रपति जी से और अल्पसंख्यक आयोग से, भारतीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग से इन सब से मिले और और यह लिस्ट उन लोगों ने इन सब को दी। इस लिस्ट के अंदर इन सब के अत्याचार लिखे हुए हैं जो आज़ादी के बाद किए गए। यह सिर्फ आखरी पांच-छह सालों के चोरों की लिस्ट ऑडियो लिस्ट राष्ट्रपति जी को सौंपी गई और यह घटना आज की नहीं है यह घटना लगभग 6 साल पहले की है। इस प्रकार से हम देखे कि भारत के अंदर यह लोग किस तरीके से धर्मांतरण करते हैं इसका स्वरूप दिखाई देता है।

इससे जुड़ा हुआ दूसरा प्रश्न, जो सामान्यतः भारत में ही पूछा जाता है, और वह प्रश्न है कि अगर यह धर्मांतरण करते हैं तो आपको क्या आपत्ति है ? क्योंकि भारत का संविधान आर्टिकल 25  कहता है कि सभी को अपना धर्म मानने, उसका प्रचार करने, और उसे विस्तार करने की संपूर्ण आज़ादी देती है। इसलिए आप कैसे मना कर सकते हैं ? वह लोग अर्ध सत्य बोलते हैं। भारत का कोई भी संवैधानिक अधिकार पूर्ण नहीं है, उस पर कुछ शर्ते हैं। इस आर्टिकल 25 के जो बाद वाला हिस्सा है वह मेरे मिशनरी मित्र जानबूझकर सामने नहीं लाते और उनका समर्थन करने वाले लोग उसको छुपाते हैं।

कुछ दिन पूर्व एक बहुत बड़े चैनल के एंकर से मेरी इसी विषय पर वार्तालाप हो रही थी और उन्होंने भी आर्टिकल 25 का जिक्र किया और मैंने उनको बताया कि श्रीमान आप अर्ध सत्य बोल रहे हैं, बाकी का हिस्सा क्या है? बाकी का हिस्सा कहता है कि यह शर्तें नैतिकता, कानून का पालन और स्वास्थ्य। धर्म विस्तार के काम से समाज की शांति नहीं खत्म होनी चाहिए, अव्यवस्था नहीं होना चाहिए, लोगों के नैतिक मूल्यों का हनन नहीं होना चाहिए।

यह सब बातें आर्टिकल 25 का हिस्सा है, और इस अधिकार को और ज्यादा परिभाषित किया है स्टेन्स  लोस Vs.  स्टेट ऑफ उड़ीसा केस में। यह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट के अंदर गया 1976 में और इस मुकदमे के अंदर यह बताया गया किसी धर्म का प्रचार करने का अधिकार धर्मांतरण करने की आज़ादी नहीं देता है। धर्मांतरण करने का अधिकार मुझे है मुझे अपने मत का पालन करने से कोई रोक नहीं सकता। धर्मांतरण मैं अपनी मर्जी से कर सकता हूं कोई जबरदस्ती मुझे करवा नहीं सकता। और करने के लिए भी कई ऐसे मुकदमे हैं जो बताते हैं धोखाधड़ी से धर्मांतरण, प्रलोभन से धर्मांतरण और बलपूर्वक धर्मांतरण यह सब गैरकानूनी है। धोखे, लालच और बलपूर्वक अगर धर्मांतरण किया जाता है तो यह गलत है और आज मैं यह पूरे दावे के साथ वह कहता हूं जो महात्मा गांधी ने कहा था – भारतीय ईसाई चावल के लिए ईसाई बने है, मुट्ठी भर चावल के लिए ईसाई बने हैं। 99% ईसाई वह है जिनके पूर्वज हिंदू थे। मैं आज दावे के साथ कहता हूं कि जो बनवासी जंगल के अंदर रहने वाले थे, जो अनुसूचित जाति के मेरे भाई जो दलित बस्तियों के अंदर रहने वाले थे, और जो गांव में रहने वाले अनपढ़ लोग थे मैं यह दावे के साथ कहता हूं कि वह चर्च में जाकर बाइबल समझ कर धर्म बदले हैं ऐसा बिल्कुल नहीं है। जो चुनौती में पिछले 20 सालों से दे रहा हूं, ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं होगा जिन्होंने ऐसे धर्म परिवर्तन किया है। लोगों को धोखा दिया गया है किस तरह के उदाहरण सामने आते हैं नियोगी कमीशन में भी यह विस्तार से बताया गया है।

विद्यालयों के बस लिए जा रहे हैं, रास्ते में बस खराब हो गई वाहन चालक को इशारा है । सब को कहा गया अपने अपने भगवान को याद करो। भगवान जी के हाथ में तो चाबी नहीं है, कोई रामजी चालू करो कोई शंकर जी चालू करो कि प्रार्थना करते हैं। अब मैं तुम्हें नया भगवान बताता हूं वह पादरी कहते हैं, कहो जीसस बस शुरू करो। वाहन चालक को संकेत मिलता है बस चालू होती है। जीसस की जय, सब का धर्मांतरण। सैकड़ों प्रकार है जो बच्चों से लेकर बड़ों तक को धोखा देते हैं यश चंगाई सभा धोखा नहीं है तो क्या है ? पुजारी मंत्र पड़ेगा जाप करेगा कोई पानी डालेगा ठीक हो जाएंगे लोग ? कोई ठीक नहीं होगा तो कहेंगे कि इसे जीसस पर विश्वास नहीं है इसीलिए यह ठीक नहीं हुआ । तुमने मदर टेरेसा को क्यों नहीं ठीक कर लिया  ? जो पिछला पादरी था उसे तो पार्किंसन रोग था, उसे क्यों नहीं ठीक कर लिया पिछले पोप को ? करोड़ों डॉलर इन के इलाज पर खर्च हुए थे या तो इनको जीसस पर भरोसा नहीं था या वह दुनिया को धोखा देते हैं चंगाई सभा करके।

तो हम देखते हैं कि इन सब कारणों से ही यह जो धर्मांतरण है वह उचित नहीं है। एक बड़ा मजेदार बात है तुम कहते हो तुम्हें धर्मांतरण का संवैधानिक अधिकार है, तो फिर घर वापसी का विरोध क्यों करते हो ? आज तुमने मिस्टर एक्स को कहा वह तुम से प्रभावित होकर ईसाई बन गया कल को उसे समझ में आया कि उसकी जड़े तो यहां नहीं है, मेरी जड़े तो हिंदू धर्म के साथ है मैं वहां आना चाहता हूं । फिर क्यों उसका विरोध करते हो ? क्यों कहते हो कि विश्व हिंदू परिषद अगर घर वापसी का कार्यक्रम चलाएगा तो गृह युद्ध हो जाएगा ? यह धमकी मुझे मिली है। मैंने परिचय बताया था उस समय में बजरंग दल में था, आसाम में था मैं उस समय वहां पर वी. के. नूह नाम के एक बिशप ने धमकी दी है की घर वापसी का कार्यक्रम अगर विश्व हिंदू परिषद ने नहीं रोका तो हम गृहयुद्ध करेंगे।

संपूर्ण मानवता आज इस धर्मांतरण के कारण त्रस्त है और यह ध्यान करना कि यह केवल धर्मांतरण नहीं है, यह एक युद्ध की घोषणा है। क्यों ? क्योंकि जो लोग धर्मांतरण करने जाते हैं उनका नाम देते हैं साल्वेशन आर्मी (मुक्ति सेना दल) वह सेना है तो सेना धर्म के काम करने नहीं जा सकती। संत जाएंगे हमारे यहां । अभी यहां स्वामी निश्चलानंद की चर्चा हो रही थी हमारी एक बहन आई हुई है रुचि, शांति के प्रतीक है एकदम निश्चल है जैसा नाम है वैसा ही स्वभाव है। और अभी बात चल रही थी कि अगर वह किसी को डांट लगा दे तो बहुत खुशकिस्मत है क्योंकि वह उसी को डांट लगाते हैं जिस को अत्यधिक प्यार करते हैं। वह कहीं पर धर्मांतरण करने के लिए नहीं जाते केवल प्यार और शांति का संदेश देने के लिए ही जाते हैं, सेना की जरूरत नहीं पड़ती है उनको।

धर्म योद्धाओं (Crusaders) की भर्ती करते हैं, जरा देखिए इसमें लिखा हुआ है। इनका भर्ती करने का एक पत्रक है – धर्म योद्धाओं (Crusaders) सावधान जीसस बोल रहे हैं उन्होंने आप को धर्म युद्ध करने का भार सौंपा है।      क्रूसे्ड (Crusade) का मतलब धर्म युद्ध सीधे-सीधे युद्ध की घोषणा। किस तरह का साहित्य छापते हैं, घृणा युक्त साहित्य कितना भयंकर है वह और उस घृणा आयुक्त साहित्य का एक उदाहरण मैं आपके सामने प्रस्तुत करता हूं। एक उदाहरण है यह पोस्टर जो हैदराबाद में एक मिशनरी ने छापा है। पुराना है लेकिन आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है और इसके लिए उन्होंने आज तक माफी नहीं मांगी है। एक ब्राह्मण पुजारी किस के चरणों में जीसस के चरणों में, यही कल्याण का मार्ग है। क्या यह पुजारी का, हिंदू धर्म का अपमान नहीं है ? ऐसे और न जाने किस प्रकार के साहित्य छापते हैं और उनसे वर्ग संघर्ष होता है। अगर कहीं सूखा पड़ जाए, बाढ़  आ जाए तो क्या साहित्य छापते हैं की आत्माओं की फसल काटने का मौका दिया है तुम्हें जीसस ने। सेवा नहीं करना है बाइबल का प्रचार करना है, उनको ईसाई बनने के लिए प्रेरित करना है यही सबसे बड़ी सेवा है उनकी। इसीलिए तो पोप भारत की धरती पर आकर दिवाली के दिन चुनौती देते हैं ।

ध्यान रखना यह कौन सा धर्म है ? ‘पहली सहस्राब्दी मैं यूरोप पर विजय प्राप्त की’ । दूसरी सहस्राब्दी में अफ्रीका व तीसरी सहस्राब्दी में एशिया पर विजय प्राप्त करेंगे। मैं समझता हूं यह मानवता के विरुद्ध सबसे बड़ा अपराध है, सबसे बड़े युद्ध की घोषणा है, यह वर्ग संघर्ष निर्माण करते हैं और केवल वर्ग संघर्ष ही निर्माण नहीं करते अगर कोई इनके धर्मांतरण में कोई बाधा डालता है तो उसको मरवाने में भी संकोच नहीं करते। मैं केवल दो उदाहरण आपके सामने दूंगा त्रिपुरा के शांति काली जी महाराज, उड़ीसा के लक्ष्मणआनंद जी महाराज धर्मांतरण में बाधा डालते थे। मैं कुछ दिन पहले उनके आश्रम गया था वह खून के निशान, किस तरह से वह भागे हैं, भागे मौत के डर से नहीं है । काम बहुत बाकी था । छोटे-छोटे मासूम बच्चों के सामने उनका अंग अंग काटकर किस तरह से अलग किया गया यह काम करने वाले कोई हत्यारे हो सकते हैं, कोई धार्मिक नहीं। लक्ष्य किस तरह का रखते हैं जोशुआ 2000, मिशन मैंडेट 2000, कुछ और भी चीजें हैं एक सुंदर राजन नाम के इनके हैं उन्होंने भी कुछ बोला। चर्च का विस्तार कैसे करेंगे । पहले हर एक पिन कोड पर एक चर्च बनाएंगे, उसके बाद हर गांव में बनाएंगे, उसके बाद इतनी दूरी पर बनाएंगे की एक चर्च के घंटे की आवाज दूसरी चर्च से सुनाई दे। जरा कल्पना कीजिए कि इस तरह की चीज है यह कर रहे हैं इसलिए जितने भी विश्व के मनीषी हैं, धर्मात्मा है वह यह चिंतन कर रहे हैं और धर्मांतरण के विषय पर चिंतित है। हमने कभी नहीं रोका किसी ईसाई को चर्च में जाने से। अभी केरल की एक सभा में मैंने स्पष्ट शब्द में कह कर आया कि अगर आपके पास चर्च कम पड़ती है तो मुझे बताइए मैं चर्च बना कर दूंगा। पहले चर्च भी एक हिंदू राजा ने बना कर दी थी। तुम जाओ, रविवार को छोड़ो हर रोज जाओ पूरा समय चर्च पर रहो कोई रोकता नहीं है। लेकिन तुम जहां एक भी ईसाई नहीं है वहां चर्च क्यों बनाओगे ?

क्या मुझे वेटिकन सिटी में हनुमान मंदिर बनाने की अनुमति दोगे ? वहां हिंदू रहता ही नहीं तो मैं क्यों बनाऊंगा ?  हनुमान मंदिर हिंदुओं के लिए पूजा का स्थान है। वैसे ही चर्च सिर्फ ईसाइयों के लिए पूजा का स्थान है, यदि वह ऐसी जगह में चर्च बना रहे हैं जहां एक भी ईसाई नहीं है तो समझ लीजिए यह धर्मांतरण के युद्ध की घोषणा है। चर्च की घंटी ही नहीं वह युद्ध का नाद है जो वहां पर रहने वाले लोगों को त्रस्त करता है।

मैंने अपने भाषण की शुरुआत जो की थी वह रांची के अनाथालय से की थी। मैंने प्रारंभ में बताया कि ढाई वर्षों में 280 बच्चों की तस्करी वहां पर की गई थी। कहते हैं ना लोग की सेवा करते हैं, यह तो सेवा के नाम पर क्या  करते हैं यह उसका एक छोटा सा प्रदर्शन में करना चाहूंगा। वहां केवल बच्चों की तस्करी ही नहीं हुई, बच्चे किस तरह से पैदा किए जाते हैं। थोड़ी सी अगर गहराई में अध्ययन करते तो यह पता चलता कि वहां पर जो कुंवारी लड़कियां रहती थी, उनके साथ दुष्कर्म किए गए, उनसे भी जो बच्चे पैदा हुए वह लापता है।

उनके बारे में नहीं मालूम। इतने घिनौने काम किए हैं, निर्मल ह्रदय नाम तो है ना वहां पर किसी तरह का निर्मलता है और ना ह्रदय ही है किसी तरह का। पूर्ण रूप से ह्रदय हीनता। कोई भी व्यक्ति कमजोर ह्रदय का होगा तो वह पूर्ण रूप से वर्णन सुनने या पढ़ने के बाद अपने आंसू रोक ना सकेगा । यह घटना केवल रांची तक ही सीमित नहीं है । मैं आज यह आरोप लगा रहा हूं यह घटना भारत में जितने भी अनाथालय हैं, इसी तरह के आरोप उन अनाथालयों पर भी बार-बार लगते रहे हैं। घटनाएं दबा दी जाती थी।

रांची पर जो पहला आरोप लगा तो जो इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर था उस पर महिलाओं से छेड़छाड़ का आरोप लगा कर उसे बाहर निकाल दिया गया था और वह जांच वहीं पर रुक गई थी। वास्तव में मदर टेरेसा या उनके अन्य साथियों के द्वारा चलने वाले अनाथालय या उनके द्वारा चलने वाले अन्य चीजें या तथाकथित आश्रम से बार-बार ऐसी शिकायतें मिलती रही है। इनका इलाज भी नहीं कराया जाता, क्यों ? अगर यह कष्ट सहते हैं तो यह उस कष्ट का अनुभव करते हैं जो जीसस ने सहा था। अगर आप कष्ट सहते हैं तो इससे मानवता का भला होगा। भाई जरा पोप और मदर टेरेसा को भी कष्ट सहने देते।

क्यों उनको तुम अस्पताल में इलाज करवा रहे थे महंगा महंगा ? जो ध्यान में आता है इनको केवल प्रार्थना के बल पर ठीक होने के लिए छोड़ देना यह चर्च का अमानवीय चेहरा है। वहां व्यवस्था भी रखते हैं जानबूझकर गंदगी भी रखते हैं, कोलकाता में एक जगह मेरा भी जाना हुआ था । क्यों ? यह सब जानबूझ कर लोगों को दिखा कर वह पैसा इकट्ठा करते हैं विदेशों से, सेवा उनके लिए एक धंधा बन गया है उनके लिए व्यवसाय बन गया है। सेवा का उद्देश्य जब धर्मांतरण होता है तो वह व्यवसाय बन जाता है। इसीलिए हमारी मांग है, जैसा नियोगी कमीशन बना था वैसा ही नियोगी कमीशन का द्वितीय भाग बनना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश से इन सब की गहराई से जांच होनी चाहिए, जो दूध का दूध और पानी का पानी कर दे। भारत को इन के पापों से मुक्ति दिलाएं।

मुझे लगता है आज अगर जीसस होते तो वो इनको इन पापों के लिए कभी माफ नहीं करते। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि अगर हिंद महासागर की कीचड़ निकालकर इनके मुख पर मल दिया जाए तो वह कालिख कम होगी, उनके कारनामों की कालिख से। आज वही वाक्य दोहराने के लिए मुझे मजबूर होना पड़ रहा है, एक अकेले ऐसे रांची से नहीं, और भी विषय बार-बार सामने आते हैं। अभी मेरा परिचय कराते हुए राहुल ने कहा कि पूर्वोत्तर में क्या संबंध रहे हैं चर्च के आतंकवादियों से, इस पर एक चर्चा उनसे हो रही थी शायद उसी चर्चा से इन के मन में रुचि जागी इस विषय के बारे में गहराई से जानने की।

 22 मार्च 1999, द टेलीग्राफ अखबार में, त्रिपुरा की सरकार उस समय कम्युनिस्टों की सरकार थी। उसने भारत सरकार जो कांग्रेस की सरकार थी, उनके गृह मंत्रालय को पत्र लिखा । क्या लिखा कि यहां के आतंकी संगठनों के चर्च के साथ संबंध हैं। इन पर रोक लगना चाहिए । इन्हें विदेशी पैसा मिलता है, इन्हें विदेशी धनराशि प्राप्त होने से रोक लगाना चाहिए। लगभग उसी साल त्रिपुरा के एक चर्च में आरडीएक्स भी पकड़ा जाता है। आतंकवादी गतिविधियों को पैसा मुहैया करा रहे हैं। इनके पास पैसा कहां से आता है? वह विदेशी धन होता है। नंबर 1।  नंबर दो नकली करेंसी। द एशियन एज अखबार, 1999 मे यह लिखते हैं बापटिस्ट हेल्ड इन फेक करेंसी रैकेट अर्थात चर्च के ईसाई दीक्षा गुरु नकली नोट बनाने में गिरफ्तार हुए। पैसा उगाने का तीसरा तरीका नशीली दवाएं। पूर्वोत्तर में जगह-जगह नशीली दवाओं में हमारी युवा पीढ़ी खोखली हो रही है, और यही वह चाहते हैं। कुछ दिन पहले मणिपुर गया, कितना नशीली दवाओं का व्यापार आज की सरकार उस पर रोक लगा रही है। बधाई के पात्र हैं कुछ सरकारें। इन सब तरीकों से यह पैसा इकट्ठा करते हैं और पैसा इकट्ठा करके आतंकवादी संगठनों को देते हैं। नागालैंड का एन. एस. सी. एन. आई. एच एम, इसके साथ चर्च के क्या संबंध थे यह तो पूरी दुनिया जानती है। अमेरिकन बापटिस्ट चर्च का संबंध एन एस सी एच आई एम के साथ है, यह खबर मेरी नहीं है यह खबर छपी है आसाम ट्रिब्यून के अंदर 8 मार्च 1999 में। यह इनका शांति वाला चेहरा है।

इसलिए पूर्वोत्तर के अंदर किस प्रकार के जुल्म करते हैं मैंने आप लोगों को जो पत्र उन लोगों ने लिखे थे वह भी आपको पढ़कर सुनाया। किस तरह से वहां पर लोगों को मारते हैं, जो ईसाई नहीं बनते उन को खत्म कर देते हैं।विद्यालयों पर हमला करके वहां जबरदस्ती चर्च बनाते हैं और आतंकवादी संगठनों का साथ देकर उनकी फंडिंग करते हैं, उन को हथियार देते हैं और भारत की जड़ों को कमजोर करना और उन लोगों को वहां से अलगाव का भाव पैदा करना। वह भारत से अलग है। बहुत गहन यात्रा थी मेरी पूर्वोत्तर राज्यों में।

वह जो एक कहानी चलाई थी इन लोगों ने वह हिंदू नहीं है । उनका अपना अलग धर्म है। हां, निसंदेह उनका एक अपना धर्म है, उनकी पूजा पद्धति अलग है। पर वह अलग नहीं है कोई पूजा करता है सूर्य की, कोई चंद्रमा की, कोई तारे की, कोई पेड़ की, कोई नदी की, कोई पहाड़ की। हिंदू हिंदू किसकी पूजा करता है ? जितने प्राकृतिक पूजक हिंदू हैं क्या हम मां तुलसी की पूजा नहीं करते ? क्या हम हिमालय को पिता नहीं कहते? क्या हम गंगा को माता नहीं कहते ? प्रकृति के साथ सीधा संबंध हमारा है। इसीलिए वह हमसे अलग है ऐसा संभव नहीं है। दुनिया का कोई और धर्म प्रकृति का किस तरह से साधना नहीं करता जितना हम करते हैं। उनमें अलगाव के भाव को पैदा करने की कोशिश करना, इस तरह का विषय उन लोगों के द्वारा चलता है।

अभी एक और विषय को लेकर भारत में बहुत चर्चाएं हुई । भारत के 2 बड़े बिशप ने कुछ पत्र लिखें और उन पत्रों में लिखा कि भारत में धर्मनिरपेक्षता खतरे में है। बार-बार लोग पूछते हैं यह क्यों लिख रहे हैं ? हमारा सवाल यह है कि क्या यह पहली बार लिख रहे हैं ? ना पहली बार नहीं। मुझे ध्यान आता है अटल जी की सरकार । जब अटल जी की सरकार बनी थी तब भी इसी तरह के आक्रमण होने शुरू हुए थे। अटल जी की सरकार छोड़ दीजिए जब भी चुनाव आता है चाहे गोवा का आए, चाहे गुजरात का आए, चाहे झारखंड का आए, चाहे मध्य प्रदेश का आए, चाहे उड़ीसा का आए। जैसे फतवे इस्लाम की तरफ से जारी होते हैं वैसे ही चर्च से भी Sermons (उपदेश) जारी होते हैं – हमें राष्ट्रवादी ताकतों को हराना है। कहीं-कहीं सीधे एक राजनीतिक पार्टी का नाम ले लेते हैं, मैं इस कार्यक्रम में किसी राजनीतिक पार्टी का नाम नहीं लूंगा। लेकिन यह राष्ट्रवादी ताकत के नाम पर किस लोगों के तरफ इशारा करते हैं? इसका मतलब इनका काम राष्ट्र विरोधी ताकतों के साथ देना है। उन लोगों की सरकार को लाना है जो पोप की कठपुतली बन कर काम कर सके। जब भी ऐसी सरकार आती है जिनको यह राष्ट्रवादी कहते हैं तब तब इनका यह चेहरा सामने आता है। अटल जी के सरकार के समय पर ना जाने कितनी घटनाएं थी जिन्हें चर्च पर आक्रमण बोलकर प्रसारित की गई। एक बाढ़ आ गई थी। संपूर्ण विश्व का मीडिया, मेरे पास भी आता था । मैं उस समय बजरंग दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करता था। क्यों हमले हो रहे हैं ? नन का बलात्कार क्यों हो रहा है ? हमारे लिए आश्चर्य का विषय था। हमारे कार्यकर्ता महिलाओं की सुरक्षा करते हैं।

अगर कहीं हमारी इकाई खुल जाए तो लोग आश्वस्त होते हैं कि उनकी बहन बेटी सुरक्षित रहेगी। हम तो क्षत्रपति शिवाजी को मानने वाले हैं और यह आरोप पहली बार नहीं लग रहे हैं। थोड़ा सा और इतिहास में जाएंगे स्वामी विवेकानंद जी पर भी आरोप लगाए थे जब विवेकानंद के शिकागो भाषण के बाद उनके सारे चर्च का ढांचा ढह गया था और तब उनको रोकने के लिए उन्होंने कहा था महिलाओं को नहीं जाना चाहिए विवेकानंद के पास। वह व्यभिचारी हैं। यह इनका प्रिय आरोप था। यही सब इन्होंने अटल जी के समय पर किया । यही सब अब भी कर रहे थे लेकिन थोड़ा सा संभल गए। उस समय केवल आरोप ही नहीं लगाए यू. एन. ओ. के बाहर भी प्रदर्शन किया भारत के खिलाफ, भारत सरकार के खिलाफ। यह कौन सा तरीका है ? प्रतिबद्धता कहां है आपकी ? भारत में रहोगे और भारत के खिलाफ विदेशों में जाकर नारे लगाओगे। अगर कहीं अत्याचार हैं तो क्या यू. एन. ओ. आकर दखल देगा ? अगर कहीं अत्याचार है तो भारत की सरकार, भारत की न्यायपालिका सक्षम है उन अत्याचारों को रोकने के लिए। हमारा तंत्र, हमारा संविधान बहुत सक्षम है, वह कमजोर नहीं है। संविधान पर विश्वास नहीं, न्यायपालिका पर विश्वास नहीं, भारत की सरकार पर विश्वास नहीं, भारत की जनता पर भी विश्वास नहीं।

यू. एन. ओ. में जाकर प्रदर्शन । और मैं आज यह आरोप लगा रहा हूं, और अगर यह आरोप गलत है तो मैं चुनौती देता हूं संपूर्ण ईसाई समुदाय को कि मुझ पर केस करें मैं अदालत में सबूत रखूंगा। तब इसे छपने से कोई नहीं रोक पाएगा। उस यू. एन. ओ. के बाहर प्रदर्शन से ऐसा कहा जाता है अरबों डॉलर इकट्ठे किए भारत के ईसाई नेताओं ने। और किस किस तरह आरोप लगाए ? यहां पर जो हिंदू नियोक्ता है वह बलात्कार करते हैं अपने ईसाई कर्मचारियों के साथ। उनको चलती हुई ट्रेन ओं से फेंका जाता है । उनको पेशाब पीने के लिए मजबूर किया जा रहा है। आप में से बहुत बुजुर्ग लोग यहां बैठे हैं मैं उनसे पूछना चाहता हूं क्या उन दिनों के अंदर जब अटल जी की सरकार थी एक भी उदाहरण इस तरह का था ? और जब सब सीमाएं पार हो गई तो हम लोगों ने एक लिस्ट  बनाई उन सब आरोपों की। यह लिस्ट मैं आपके सामने रख रहा हूं उन सब आरोपों की और यह लिस्ट केवल बनाई ही नही हम अल्पसंख्यक आयोग के पास गए। जस्टिस समीम उस समय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हुआ करते थे।

उनसे कहा इसकी जांच कीजिए और इस जांच में यदि यह सत्य पाए जाते हैं, हमारे संगठन का नाम भी था कहीं-कहीं, जो सजा देंगे हम कबूल करेंगे और झूठे पाए जाते हैं तो इन लोगों को कम से कम डांटे तो सही। हम मिले राष्ट्रपति से, हम मिले प्रधानमंत्री से और उनसे कहा कि इन सब चीजों की जांच करवानी चाहिए। और आपको जानकर खुशी होगी कि जांच हुई। अल्पसंख्यक आयोग ने भी करवाई, भारत सरकार ने भी करवाई।

अल्पसंख्यक आयोग में स्पष्ट शब्दों में कहा यह सब घटनाएं झूठी है। इसमें हिंदू समाज का कोई भी हाथ नहीं है। जिसको चर्च पर हमला कहा था, वह हमला नहीं एक छोटी सी चोरी की घटना है जो दिल्ली के अंदर मोदी जी की सरकार आने के बाद उन्होंने प्रचार किया था।

जॉनी जब भी राष्ट्रवादी सरकार आई उसको डिस्टेबलाइज करेंगे, अस्थिरता पैदा करेंगे ? पूरे विश्व में हमको बदनाम करो समझ में आता है क्योंकि हम तुम्हारे धर्मांतरण को रोकते हैं और केवल रुकते ही नहीं हैं घर वापसी भी करते हैं और हमारा संकल्प है हम सारे लुटे हुए माल को वापस लेकर आएंगे। 99% ईसाई ऐसे हैं जिनके पूर्वज हिंदू थे हम 1-1 को नहीं छोड़ेंगे सब को वापस लेकर आएंगे। हमको बदनाम करें समझ में आता है । भारत को बदनाम करोगे ? भारत की जनता को बदनाम करोगे ? लड़ना है मोदी जी से लड़ो, उन्होंने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा नहीं है। हमारी मोदी जी से इसी विषय पर लड़ाई होती है । मदर टेरेसा का जन्म बीटिफिकेशन हो रहा था क्यों आपने एक मंत्री को वहां भेजा ? क्या यह धोखा नहीं था ? एक जादू किया जाता है, कहां जाता है इसका चमत्कार होना चाहिए एक लड़की का नाम लिया जाता है मोनिका कहां जाता है उसको अल्सर था वह मदर टेरेसा के फोटो के सामने खड़ी हो गई और आशीर्वाद मिला और वह ठीक हो गई। जबकि वहा डॉक्टर्स की टीम कहती है इनका इलाज हमने किया था और उनकी सर्जरी हुई थी। यह रिकॉर्ड पर है। उस धोखे में भारत सरकार शामिल हो रही है ? हम लड़े थे इस बात को लेकर। आप के कारण से जस्टिफिकेशन होता है । लेकिन शायद कुछ राजनीतिक मजबूरी रही होगी। लेकिन परिणाम क्या मिल रहा है ? मदर टेरेसा भी कोई सेवा के नाम पर विषय नहीं था इनका। इस तरह के झूठे आरोप लगाना, जब अल्पसंख्यक आयोग ने भारत सरकार के अंदर कुछ समय के रक्षा मंत्री कौन ? जॉर्ज फर्नांडिस जो एक देशभक्त ईसाई थे, उनकी देशभक्ति के ऊपर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता। आखरी दम तक, आखरी सांस तक शरीर नहीं चलता था लेकिन मन भारत मां के चरणों में था,  ऐसा उनके साथी बताते हैं।उसने लोकसभा में खड़े होकर कहा था, जॉर्ज फर्नांडिस में, यह सब आरोप असत्य साबित होते हैं। हमने जांच कराई है।

नैतिकता बनती है झूठ साबित होने पर माफी मांगो, लेकिन शायद नैतिक व्यक्ति से ही हम नैतिकता की अपेक्षा कर सकते हैं। लेकिन वह नैतिकता उनके अंदर नहीं है यह साफ दिखाई दे रहा है और मैं आज फिर जैसा पहले कहा था आज भी आप जांच कराइए ना । लेकिन जांच करानी पड़ेगी तूतीकोरिन की। क्यों चर्च में से भीड़ निकलती है और वहां पर एसपी के ऊपर वहां के सेक्रेट्रीआर्ट (Secretariat) में हमला करती हैं। जांच करनी पड़ेगी पत्थलगड़ी कि, आज ही खूंटी का वर्णन आया है। एक ईसाई और एक माओवादी दोनों मासूम लड़कियों से बलात्कार कर रहे थे और पुलिस न पकड़ सके इसके लिए पत्थर गढ़ दिया गया, पत्थलगड़ी हो गई। यह षड्यंत्र था। मैं आज कह रहा हूं तूतीकोरिन, चाहे वह पत्थलगड़ी का हो यह चर्च का इन सब के पीछे हाथ पाया जाएगा। और दिखाई दे रहा है। वह पकड़े जा रहे हैं और जो पकड़े जा रहे हैं उसने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी ली है । आज ही ली है। तो यह वास्तव में कोई धार्मिक संगठन नहीं है। यह साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा वाला एक राजनैतिक संगठन है जो नैतिकता से दूर है और अपने षडयंत्रो के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।

यह जो पत्र हमने राष्ट्रपति को दिया था यह पत्र दरअसल एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। उस समय राष्ट्रपति थे डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। अल्पसंख्यक के, देने वाला कौन ? सुरेंद्र कुमार जैन। आज जैन भी अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है, और जिसकी शिकायत कर रहे हैं वह कौन ?  वह भी अल्पसंख्यक है – ईसाई। और हमने जब तथ्य सामने रखें तो डॉक्टर कलाम ने कहा कि डॉक्टर जैन आप कुछ कम बता रहे हैं। मैं तो इनके बारे में इससे भी ज्यादा जानता हूं। मैं भारत सरकार को भेजूंगा। इन सब की जांच करने के लिए भेजूंगा और मैंने आंकड़े दिया है बकायदा, कितना विदेशी धन भारत में आता है। 80% विदेशी धन केवल ईसाई संगठनों को आता है यह केवल और केवल धर्मांतरण करते हैं ,कहीं और खर्च नहीं करते। 5 देशों का नाम आया था जहां से सबसे ज्यादा पैसा मिलता है अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली और नीदरलैंड। 10000 करोड़ से अधिक, उस समय, केवल 10 वर्षों में यह पैसा आया था और वास्तव में अगर अन्य माध्यमों से हम देखेंगे तो इससे कई गुना इस प्रकार का शब्द है। वह मैंने पोप के बारे में आप लोगों को बताया ही किस प्रकार से चुनौती देकर गए हार्वेस्टींग  (harvesting) द ग्रुप ऑफ़ सोल – आत्माओं की फसलें काटने आए थे। और किस प्रकार से हमारे देवी देवताओं का अपमान करते हैं। राम के बारे में लिखा है वह पुस्तक मैंने स्वयं पढी है।  क्या लिखा है राम के बारे में ? जो अपनी बीवी को नहीं बचा सका वह आपको क्या बचाएगा ? जो स्वयं मर गया वह आपको मृत्यु से कैसे बचा सकता है ? क्योंकि उनका मानना है पोप मरे नहीं है। जब ईसाइयत संकट में होगी तो वह वापस आएंगे। जितना संकट आज ईसाइयत के सामने है उतना कभी नहीं हुआ। यूरोप में चर्च खाली पड़े हैं, नन भी वहां पर नहीं है भारत से नन वहां पर ले जाते हैं। लोक पादरी वहां से नहीं निकल रहे हैं। चर्च वहां पर बिक रहे हैं । एक जगह तो हमने ही खरीद कर मंदिर बनाया है। चरित्र का इतना भयंकर, सारा विश्व त्रस्त है,बच्चों के साथ, औरतों के साथ नन के साथ किस प्रकार के संबंध हैं वह रोज सामने आ रहे हैं। वह कहते हैं जीसस वापस आएगा, अब नहीं आएगा तो कब आएगा? इससे बड़ा संकट तो तभी होगा जब पूर्ण रूप से सफाई हो जाएगी। तब तुम आकर क्या करोगे ? अब नहीं आ रहे तो कब आएंगे ? तो वह कहते हैं राम कैसे बचाएंगे ?

कृष्ण के बारे में क्या क्या जाता है ? व्यभिचारी और न जाने क्या ? मां काली को अंधकार की देवी और इस प्रकार की कितनी चीजें हैं जो समाज के अंदर संघर्ष का निर्माण करने के लिए कहा जाता है। और उनके लक्ष्य इत्यादि के बारे में जो सारा विषय है वह मैंने आपके सामने रखा है। अभी जब मैं आ रहा था तो तिरुपति मंदिर के बारे में हमारे एक भाई बता रहे थे।

आखिर तिरुपति मंदिर में भाई क्यों ईसाइयत का प्रचार कर रहे हो ? पहले हर पहाड़ के ऊपर तुमने क्रॉस लगा दिया था। क्यों? अब हटाया है। नहीं रह सकता भगवान तिरुपति की धरती है वह। हनुमान जयंती पर जबरदस्ती घुस कर पोस्टर लगाए गए, संघर्ष नहीं होगा क्या समाज के अंदर? और सब प्रकार के साधनों का प्रयोग करते हो। धर्मांतरण के लिए नौकरी का झांसा देते हो। जिनके साथ यौन संबंध स्थापित हो जाए, छात्राओं के साथ उनको कहते हो ईसाई बन जाओ, तब इस मामले को आगे नहीं उठाएंगे। जबरन धर्मांतरण । मेहंदी लगाकर बच्चियां आ रही है स्कूल में उन पर बैत बरसाई जा रही है।

किस प्रकार के आरोप इन लोगों ने लगाए हैं उनकी एक लिस्ट मैंने आपके सामने दिखाई है। एक प्रश्न हमारे सामने करते हैं कहते हैं हम हैं ही कितने हमको चिंता करने की जरूरत ही क्या है ? जब यह रांची वाला विषय आया और मैंने तुरंत प्रेस रिलीज जारी की तो कई जगह पर मेरे पास संदेश आए । क्योंकि मैं सोशल मीडिया पर केवल ट्विटर का प्रयोग करता हूं या व्हाट्सएप का प्रयोग करता हूं। तो कई जगह से विश्व में संदेश आए। हम बहुत अल्पसंख्यक है, छोटे से हैं, क्या करोगे क्यों हमसे इतने परेशान हो परेशान हो? हम तो ढाई प्रतिशत है।

वास्तव में ढाई प्रतिशत नहीं है 2.61 प्रतिशत तो सेंसस कहता है। लेकिन उन्हीं का साहित्य कहता है संबंधित ईसाई 3.94 % है।

जिन्होंने अपने आप को ईसाई तो बन गए हैं अपने आप को ईसाई के रूप में लिखवाया नहीं है। क्यों नहीं लिखवाया ? अनुसूचित जाति का लाभ चला जाएगा। और भी सरकारी लाभ जो मिल रहे हैं वह भी छूट जाएंगे।

वह मिलते रहे और यहां जाते रहे इनको कहते हैं एफिलिएटिड ईसाई। और दोनों को अगर हम मिला दे तो यह संख्या 6.50 प्रतिशत हो जाती है।6.5% इनके असली चरित्र को नहीं प्रदर्शित करती, 6. 5% में दिल्ली भी शामिल है।

लेकिन वहां इनका चरित्र देखिए जहां यह 80-90 प्रतिशत है। नागालैंड, मिजोरम, मेघालय। त्रिपुरा में इतनी प्रतिशत नहीं है, लेकिन वहां पर इनकी तादाद काफी अधिक है। हिंदू का जीना मुश्किल है। रह नहीं सकता सरस्वती पूजा कर नहीं सकता। मां दुर्गा की पूजा कर नहीं सकता। अपने त्यौहार नहीं मना सकता, जबरदस्ती उन्हें गौ मांस खाने के लिए मजबूर होना पड़ता है ऐसी न जाने कितनी चीजें हैं। केवल संख्या कम है यह कह कर तुम बच नहीं सकते।  जहां ज्यादा हो तुम्हारा असली चरित्र वह है। हम जहां ज्यादा होते हैं वहां चर्च बनवा कर देते हैं वहां मस्जिद बनवा कर देते हैं, तुम्हारे सुरक्षा करते हैं। जहां तुम ज्यादा होते हो वहां हमको तुम जीने नहीं देते हो, हत्या करा देते हो संतो की। तो इसलिए यह इन लोगों का असली चरित्र भारत के अंदर दिखाई देता है।  लेकिन एक चीज पर मैं जरूर प्रकाश डालना चाहूंगा यह जो नन का मामला आया है, इसके संबंध में नारियों के प्रति इनका क्या दृष्टिकोण है यह जरूर समझना चाहिए। आखिर क्यों यह बार-बार आरोप लगाते हैं विवेकानंद से हमारे ऊपर कि हमारी नन के साथ छेड़छाड़ की गई। जो केरल के  नन का आरोप था वह तो बहुत ही गंभीर था जिसने कहा था कि 5 पादरियों ने लगातार कई वर्ष तक मेरे साथ दुष्कर्म किए। 250 से ज्यादा बार किए। कल्पना कीजिए। क्यों? कन्फेशन बॉक्स। कन्फेशन बॉक्स में उसने अपराध स्वीकार किया अपना। विवाह पूर्व संबंध था किसी पादरी के साथ। जिसके सामने यह स्वीकार किया उसने ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया, जिस से शिकायत की उसने ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। 5 नन केरल की आत्महत्या कर चुकी है क्योंकि उनके साथ जबरन दुष्कर्म किए जाते थे पादरियों के द्वारा। जब यह एक नन की घटना आ रही थी उस समय जालंधर से भी एक शिकायत आई। वहां एक नन ने कहा यहां एक पादरी लगातार कई वर्षों से मेरा यौन शोषण कर रहा है।

आज पूरी दुनिया में चर्च जिस कारणों से बदनाम है उसमें सबसे बड़ा कारण महिलाओं और बच्चों के साथ यौन शोषण है। पादरी परस्पर भी करते हैं और इसी कारण एक पोप ने कहा था ऐसी शिकायतों को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए। आज एक बड़ा महत्वपूर्ण रहस्य उद्घाटन मैं आपके सामने कर रहा हूं।

वेटिकन सिटी वहां का एक अनुशासन अधिकारी होता है, जिसकी भी शिकायतें होती हैं लोग उनसे करते हैं। पिछले दिनों वेटिकन सिटी के डिसिप्लिन अधिकारी ने त्यागपत्र किया और उसने कहा मैंने 5 साल तक यह काम किया है।

इन 5 सालों के अंदर मेरे पास तीन हजार से ज्यादा शिकायतें आई हैं।  उन शिकायतों में 80% से ज्यादा यौन उत्पीड़न की है। 80% मतलब 2500, यानी 500 केस एक साल में। एक दिन में एक से ज्यादा। यह असली चरित्र है। दो दिन पहले दो तारीख को एक खबर छपी है द गार्जियन में। पोप फ्रांसिस कहते हैं, उनसे पूछा गया, क्या आप महिला को कभी कैथोलिक प्रीस्ट  बना सकते हैं ? जरा देखिए महिलाओं का सम्मान। वह कहते हैं नहीं यह काम पुरुषों के लिए ठीक है, कुछ काम महिलाएं बढ़िया करती है। और वह कुछ काम क्या है ? उनका दृष्टिकोण स्पष्ट है, क्योंकि बाइबल में भी लिखा गया है महिला का निर्माण पुरुषों के मनोरंजन के लिए किया गया है।

कुछ साल पहले तक तो यह मानते थे इनमें जान भी नहीं है । निर्जीव है । महिलाओं पर चाहे जो अत्याचार कर लीजिए, चाहे ठोकर मार लीजिए ऐसा ही है जैसे हमने चलते चलते किसी पत्थर को ठोकर मार दी। उनका निर्माण केवल पसली लेकर पुरुषों के मनोरंजन के लिए था क्योंकि एडम जब बोर हो गया, मन नहीं लग रहा क्या करूं मुझे मनोरंजन के लिए कुछ चाहिए क्योंकि वह सेब खा चुका था।

तब उसकी पसली निकाल कर हव्वा का निर्माण किया गया, और यह जो पहली संतान हुई कहां गया यह पाप की संतान है। हमारे यहां कोई जन्म होता है वह ईश्वर का जन्म होता है, ईश्वर की कृति है और वह जन्म को पाप का कृति मान कर चलते हैं। इसीलिए हमने देखा विच हंटिंग का जो विषय मैंने आपके सामने रखा। तो इन सब चीजों के कारण से ध्यान में आता है कि इनका महिलाओं के प्रति क्या दृष्टिकोण है। इसीलिए बार-बार हर बार जब भी इनके पाप पकड़े जाते हैं इसी तरह के आरोप। निर्मल ह्रदय का जांच अधिकारी आया इसने छेड़खानी कर दी, फलाना आया इसने छेड़खानी कर दी। बजरंग दल को बदनाम करना है हमारी नन के साथ छेड़खानी कर दी। वह नन कह रही है यह बलात्कार नहीं था, जिनके साथ हमारे संबंध बने वह आपसी सहमति से था और वह बजरंग दल के लोग नहीं थे वह वनवासी थे मेरे पड़ोस में रहते थे। इन सब बातों के बावजूद वह इसी तरह का आरोप लगाते हैं, क्योंकि महिलाओं के प्रति उनके सोचने का दृष्टिकोण ही अलग है। मेरी मांग है कन्फेशन बॉक्स की परंपरा पर भी विचार होना चाहिए। अभी ज्यूडिशरी ने आदेश दिया है केरल हाईकोर्ट ने कि हम बंद नहीं कर सकते। बंद नहीं कर सकते तो भी महिला का कन्फेशन एक महिला को ही सुनना चाहिए। ब्लैकमेल करने का अवसर नहीं रहना चाहिए। क्योंकि यह पादरी धर्मगुरु नहीं है यह वासना मैं भरे हुए कीचड़ से सने हुए श्वेत वस्त्रों के अंदर पिशाच मात्र है कुछ और नहीं है। तो यह है क्रिश्चियनिटी का एक चेहरा और मैंने बाहर का एक थोड़ा सा दृश्य दिखाकर भारत तक ही अपने आप को सीमित रखा है। मैं समझता हूं इन सारे विषयों से मैंने आपको कुछ ना कुछ नया देने की कोशिश की है और शायद मिला भी होगा। मैं राहुल का और उनकी टीम का बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने आप सब लोगों से मुझे मिलने का अवसर दिया और अपनी बात कहने का मौका दिया।

अब एकतरफा नहीं होना चाहिए आपके भी कुछ प्रश्न हो सकते हैं, कुछ शिकायतें भी हो सकती है।

यदि मैंने किसी के मन को चोट पहुंचाई है। किसी के मन में आस्था रही होगी पादरी के बारे में। यदि किसी के मन को चोट पहुंची है मैं उसके लिए क्षमा याचना करते हुए आप लोगों से प्रश्न निमंत्रित करता हूं।


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