धर्मो रक्षति रक्षितः। Dharmo Raksati Raksitah.

Dharma protects those who protect it.

– Veda Vyas, Mahabharat

सत्य में श्रद्धा की आहुति ही यज्ञ है !!!


श्री राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी जी द्वारा—-

शतपथब्राह्मण ११-२-२-४ में एक प्रसंग है,

तद्वैतज्जनको वैदेह: याज्ञवल्क्यं प्रपच्छ वेत्थाग्निहोत्रं ?

विदेहजनक ने याज्ञवल्क्य से पूछा कि क्या आप अग्निहोत्र के तत्त्व को जानते हैं ?

जी हां ,जानता हूं ।

किस पदार्थ से हवन करते हो ?

दूध से !

यदि दूध न मिले तब किससे हवन करोगे ?

जौ-चावल से !

यदि जौ-चावल न मिले तब किससे हवन करोगे ?

तब जो कोई जंगली अनाज मिलेगा उससे !

यदि जंगली- अनाज भी न मिले तब ?

तो जंगली फलों से !

यदि वे भी न हों ,तब ?

तब केवल जल से !

यदि जल भी न हो तब ?
स होवाच न वा इह किंचनसीदथैतदहूयतैव सत्यं श्रद्धायामिति ।

जब केवल वेद ही था , और यह सब क्रियाकलाप नहीं था ,तब सत्य में श्रद्धा की आहुति से ही

हवन होता था ।

सत्य में श्रद्धा की आहुति ही यज्ञ है !

तब जनक ने कहा कि, हे याज्ञवल्क्य ! आप अग्निहोत्र का तत्व जानते हैं !

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