हिंदी के महान कवी निराला ने एक कविता लिखी हैं तुलसीदास के ऊपर I उस कविता की चर्चा साहित्य की आलोचना का जो जगत हैं, उसमे गुम हैं I कोई इस पर बात नहीं करता हैं I बात करता भी हैं तो दबी-छुपी ज़ुबान में I जबकि अज्ञेय ने १९४० के उत्तरार्ध में कहा था कि जब मैंने निराला की बड़ी और लम्बी कवितायेँ पढ़ी, “राम की पूजा”, “सरोज-स्मृति”, तब उतना उज्वलित नहीं हुआ था जितना की “तुलसीदास” कविता पढ़ने के बाद हुआ, और ऐसी रचनाएँ जो विरली होती हैं, जिनमे पूरी संस्कृति चलचित्र की तरह आपके सामने चलती हैं, भावुक रचनाएँ तो बहुत सारी होती हैं I
“तुलसीदास” कविता में उन्होंने उस युग का वर्णन किया हैं और लिखा हैं उन्होंने…. चुकी कवी निराला के प्रिय कवी तुसली थे रविंद्र नाथ, उनके प्रिय कवी थे, तुलसी उनके प्रिय कवी थे, ग़ालिब भी प्रिय कवी थे, लेकिन आराध्य कवी उनके तुलसी ही थे, क्योकि वे एक ही प्रांत बैसवाड़े के हैं, और उत्तर प्रदेश अवधी जो भाषा हैं I
उन्होंने लिखा हैं, कि तुलसीदास का जब ब्रह्म टूटा “रत्नावली” ने जब उन्हें झिड़की दी, और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई कि मैं कहाँ देह लिप्सा में लगा हुआ हूँ, उन्होंने लिखा हैं कि, “कल्मषोत सार कवी के दुर्गम, चेतनो उर्मियोँ के प्राण प्रथम I” कलमस का उत्सारण करने वाला जो भयंकर कल्मष था, उसका उत्सारण करने वाले, कवी वर तुलसी दास हैं, चेतना की जो लहरें हैं, उसके पहले प्राण तुलसीदास हैं I “वह रुद्ध द्वारका छाया तम तरने को”, जो रोका गया दरवाज़ा है, और उसपर जो छाया जो फैली हुए हैं ऊसे तारने के लिए तुलसीदास उभरे I
“कलमतोत्शार कवी के दुर्गम चेतनों उर्मियों के प्राण प्रथम I वह रुद्ध द्वारका छाया तम तरने को, करने को ज्ञानोद्धत प्रहार, तोड़ने को विषम दग्ध द्वार उमड़े भारत का ब्रह्म अपार हरने को I” वह कौन सा ब्रम्ह था? जिसे हारने के लिए तुलसीदास उमड़े? वह ब्रह्म इस्लाम जन्य था I जिसके बारे में कहा गया, लिखा गया कि, “मुग़लदलबल के जल्दयान तर्पित पद उन्मद नद पठान हैं बहार हेतिक देश ज्ञान शर खरता I छाया ऊपर अंधकार नीचे प्लावन की प्रलय भारत ध्वनि हर हर I”
यह हैं निराला ने लिखा हैं I इस कविता पर किसी को चर्चा करने की हिम्मत नहीं होती I उसको कोने में डाल दिया है I