धर्मो रक्षति रक्षितः। Dharmo Raksati Raksitah.

Dharma protects those who protect it.

– Veda Vyas, Mahabharat

कबीर का रामानंद जी का शिष्य न होने का दावा


आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने कबीर पर सबसे सुन्दर किताब लिखी हैं I निर्विवाद रूप से उनकी किताब सबसे अधिक शोध और गहन अध्ययन के बाद लिखी गयी है, और वैसे भी हम जैसे लोग या हमारे साथ जितने भी काम करने वाले हैं, वह आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी पर टिपण्णी करने का अधिकार नहीं रखतें हैं, ना हम उसके योग्य हैं, ना हम कुछ कर सकतें हैं I उनकी विद्वता जो हैं प्रमाणित हैं I तो उन्होंने कबीर पर जो किताब लिखी हैं, उसमे उन्होंने कई सारी पंक्तियाँ हैं, लेकिन एक मूल पंक्ति यह हैं की:

रामानंद प्रवर्तित रामभक्ति धरा I कबीर में एक रूप धारण करती है और तुलसीदास में दूसरा रूप धरती है

आगे उन्हों और विशद व्याख्या को हैं I कबीर जो की बार-बार गुरु की महिमा हैं का गान करतें हैं, वह कहतें है :

पीछें लागा जाई था लोक बेद का साथी

आगे थे सद्गुरु मिल्या दीपक दिया हाती

जो सद्गुरु मिले जिन्होंने उन्हें दीपक दिखाया वे सद्गुरु कौन थे ? वे सद्गुरु कोई और नहीं स्वामी रामानंद थे I

देखिये, कबीर… ये पहले भी मैं चर्चा कर चूका हूँ, कि:

कशी में परगट भये, चेताये रामानंद

सद्गुरु मैं बलिहारी तोर

जीनी सकल विकत ब्रह्म काटे मोर

रामानंद स्वामी रमत ब्रह्म

गुरु के सबद काटे कोटि क्रम

अब कबीर एक बार नहीं पांच बार कह चुकें है, कि गुरु की महिमा ऐसी है I और गुरु कौन है? स्वामी रामानंद है I उसके बाद भी प्रश्न उठता है कि नहीं नहीं कबीर के गुरु रामानंद नहीं है I आगे हम और देखतें हैं, कुछ और I

हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने अपने किताब में लिखा है कि “कबीर का पाठक जानता हैं कि कबीर के पदों में उसे कौनसी अनन्यसाधारण बात मिलती है जो कहीं और नहीं मिलती I  वह क्या है ? फिर वह वस्तु भी क्या हैं? जिसे रामानंद से पाकर कबीर जैसा फक्कड़मस्त मौला हमेश के लिए उनका कृतज्ञ हो गया ? दोनों का एक ही उत्तर हैं – वह बात भक्ति थी I भक्ति भी किसकी ? राम नाम, रामानंद का अद्वितीय दान था I इस परमद्भुत रत्न को पाकर कबीर कृतकृत्य रहेI” इसके बाद भी अगर किसी प्रमाण की आवश्यकता है, तो प्रमाण खोजा जा सकता है I

अब देखिये कबीर दास के कितने ही विद्रोही कवी है I नामवर सिंह जी ने एक पंक्ति लिखी हैं उनके बारे में, कि वाणी के dictator है, कबीर I निश्चित तौर पर dictator है I वह किसी चीज़को नहीं मानते I वे ईश्वर को चुनौती देते हैं, ब्रह्म को चुनौती देते हैं, संत को चुनौती देते हैं, मुल्ला को देते हैं, पंडित को देते है, पादरी को देते है, मोमिन को देते है, किसी को भी I किसी के भी सामने वह कुछ भी प्रश्न उठा सकतें है I किसी की भी लानत-मलानत कर सकते है I लेकिन कबीर कहतें है –

कबीर कूता राम का मुतिया मेरा नाऊ

गले रामकी जेवड़ी जित खैंचे तित जाऊ

तो तो करे तो वहदो दुरी दुरी करे तो जाऊ I

ज्यू हरी राखे त्यू रहे जे देवे से खाऊ I

अब बताइये जो अपने आप को राम का कुत्ता कहें उससे बड़ा अनन्य भक्त राम का कौन होगा ? यह तो वही बात हो गयी न, कि तुलसी और कबीर में कोई फर्क नहीं है I तुलसी ने कहा “जेहि बीती राखे राम ताहि बीती रहिये, यह कहतें है कुत्ता का राम काहू, तो तो करे तो वाहदो दुरी दुरी करे तो जाऊ I जो हरी राखे त्यु रहूँ, जे देवे से खाऊं I

जो दे वह खाऊं ? न दे तो न खाएं, जे बुलावे जहां कहें जाने के लिए वहाँ जाए, दूर दुराये तो मैं चला जाऊ I

अब इसके बाद भी कहें की नहीं नहीं कबीर तो रामानंद की परंपरा के भक्त नहीं थे I वै.. …अच्छा कबीर राम राम करतें हैं, राम का कुत्ता कहतें है स्वयं को I तो रामानंद राम का परिचय कराने वाले कबीर को कौन है ? रामानंद है I

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