धर्मो रक्षति रक्षितः। Dharmo Raksati Raksitah.

Dharma protects those who protect it.

– Veda Vyas, Mahabharat

भगवान् शंकराचार्य की उपलब्धियां


छोटी सी आयु थी उनकी, जब घर छोड़ा था आठ वर्ष के थे वो I संन्यास के लिए निकले जब I नौ वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास लिया और उसके बाद में, भगवान् शंकराचार्य ने, वोह काम करके दिखाया, जो आज सोचा भी नहीं जा सकता हैं I भगवान् शंकराचार्य ने १२ वर्ष से १६ वर्ष कि आयु के बीच में, सोच सकतें हैं आप ? १२ साल का बच्चा कैसा हैं ? कितना मासूम रहता हैं. कितना कोमल रहता हैं वोह I

१२ साल से १६ साल की आयु के बीच में भगवान् शंकराचार्य ने प्रस्थानात्रयी पे, प्रस्थानात्रयी I तीन तरह के प्रस्थान, ११ उपनिषदों पे भाष्य लिखा भगवान् शंकराचार्य I ब्रह्म सूत्र पे भाष्य लिकता हैं, भाद्रयाना महर्षि वेद व्यास कृत ब्रह सूत्र पे भाष्य लिखतें हैं, भगवान् शंकराचार्य I और श्रीमद भागवत पर भाष्य लिखतें हैं भगवान् शकाराचार्य I १२ वर्ष से १६ वर्ष कि आयु के बेच में, कहा भी जाता हैं, शंकर दिग विजय में, “अष्ठवर्षे चतुर वेदान ते सर्व शास्त्र वित् षोडशे, कृत्वान भाष्यं I द्वात्मनीशे मुनिरात्नादात I”

यह भी कहाँ जाता हैं, “चतुर्वेदाष्ठ्मे, द्वादशे सर्व शास्त्र वित् I षोडशे सर्व दिग जयता I द्वात्मनीशे मुनिरात्नादात I“ यानी आठ वर्ष की आयु में भगवान् शंकराचार्य ने चारों वेद पढ़ लिए I वेद, पुराण, इतिहास, यह सब पढ लिया उन्होंने I आठ वर्ष कि आयु में “द्वादशे सर्व शास्त्र वित् पूर्णरूपसे निष्णात पारंगत सिद्ध हस्त कौशल संपन्न प्रवीनम निपुनोदक्षो” हो गए वोह १२ वर्ष की आयु में वे पारंगत हो चुके थे वोह I उसके बाद “षोडशे कृत्वान भाश्यम” १२ से १६ वर्ष की आयु के बीच में प्रस्थानात्रयी पे भाष्य लिख दिए, ११ उपनिषद् पर धर्म सूत्र पर और श्रीमद भगवत पर, गीता पर I

यह भी कहा जाता हैं, “षोडशे सर्व दिग जयता” यानी १६ वर्ष के बाद दिग विजय अभियान चालू करा उन्होंने I शंकर दिग विजय, एक स्वर्णिम इतिहास रचा उन्होंने I और “द्वात्मनीशे मुनिरात्नादात”, यानि ३२ वर्ष कि आयु में वोह शिव स्वरुप को प्राप्त हो गए थे I यानी निजधाम कैलाश गमन किया भगवान् शंकराचार्य ने I क्या speed हैं उनकी I ३२ वर्ष कि आयु में वोह १२ से १६ वर्ष की आयु के प्रस्थानात्रयी पर भाष्य लिखतें हैं I और १६ साल के बाद में वोह आर्याव्रत कि इस पुण्य धरा के ऊपर शंकर दिग विजय का इतिहास रचने के लिए निकलतें हैं I वेद विरोधी, मत-सम्प्रदाय को बिलकुल शास्त्रार्थ की समर भूमि में वैसे ध्वस्थ करने निकलतें हैं वोह जैसे की सूर्य अन्धकार को ध्वस्थ करता हैं I

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