धर्मो रक्षति रक्षितः। Dharmo Raksati Raksitah.

Dharma protects those who protect it.

– Veda Vyas, Mahabharat

भगवान् शंकराचार्य का अवतरण काल


पूरे facts और evidences के आधार पे हमारे पास तथ्य, प्रमाण, साक्ष और आंकड़े हैं जो यह बतातें हैं कि भगवन शंकराचार्य का अवतरण इसवी सन से ५०७ वर्ष पूर्व सिद्ध होता हैं I अब मैं आपको वोह timeline निकालके इसमें बताना चाहता हूँ, मैं आपको बता देता हूँ I

भगवान् शंकराचार्य ने राजपीठ की जो स्थापना करी थी, उसके लिए उन्होंने, सम्राट सुधन्वा को अखंड भारत का राज सिंहासन समर्पित किया था, और सम्राट सुधन्वा की भूमिका जो हैं शंकर दिगविजय में, वोह कोई छोटी-मोटी भूमिका नहीं हैं I सम्राट सुधन्वा ने मेहती भूमिका निभाई हैं शंकर दिग विजय के अभियान में, भगवान् शंकराचार्य के I भगवान् शंकराचार्या के निजधाम, कैलाश गमन, जो कि ३२ वे वर्ष में सिद्ध होता हैं, भगवान् शंकराचार्य के निजधाम कैलाश गमन के एक माह पूर्व, यानी एक महीने पहले, सम्राट सुधन्वा ने भगवान् शंकराचार्य को प्रशस्ति पत्र भेंट किया था, और उस प्रशस्ति पत्र में, वोह ताम्र पत्र था, copper inscription था वोह I

प्रशस्ति पत्र जो दिया था वोह, उसके ऊपर जो डेटिंग लिखी थी सम्राट सुधन्वा ने उस डेटिंग में उन्होंने, युधिस्ठिर संवत का उल्लेख किया था I शक संवत हमारा नेशनल कैलेंडरभी है , उसके बाद में इसी संवत भी हैं, उसके बाद में फिर हमारे यहाँ विक्रम संवत भी हैं, कलि संवत भी हैं हमारे यहाँ, तो कलियुग का संवत भी हैं, और युधिस्ठिर संवत भी हैं I और हाँ, कृष्ण संवत्सर भी हैं, हमारे यहाँ I भगवान् कृष्ण, टोटल १२५ वर्ष तक रहे थे इस धरा-धान के ऊपर I तो कृष्ण संवत्सर भी हैं हमारे पास, जो कृष्ण भगवान् के जन्म से आरम्भ होता हैं I तो सम्राट सुधिन्वा ने जो copper plate inscription दया था, शंकराचार्य भगवान् को प्रशस्ति पत्र भेंट किया था, जो उन्होंने, उसके ऊपर जो उन्होंने डेट डाली थी, वोह डेट यह थी … युधिस्ठिर संवत २६६३ आश्विन शुक्ल १५ को, भगवान् शंकराचार्य को प्रशस्ति पत्र भेंट किया, सम्राट सुधन्वा ने I

और उसके ठीक एक महीने बाद, २६६३ कार्तिक पूर्णिमा को भगवान् शंकराचार्य ने निजधाम कैलाश धाम, निजधाम कैलाश गमन किया I लेना समरण करके I तो यह जो युधिस्ठिर संवत हैं, हम इसकी timeline निकालेंगे I और इसके बाद में हम कृष्ण संवत्सर की भी timeline निकालेंगे, हम यह भी timeline निकालेंगे कि, महाभारत का युद्द कब हुआ था ? वोह कौन सा वर्ष था, जब महाभारत का युद्द हुआ था ? तब भगवान् कृष्ण की आयु कितनी थी ? और साथ ही साथ युधिस्ठिर जी का राज्याभिषेक कब हुआ था? और कलियुग किस दिन से आया ? प्रवेश कलियुग का कब से होता हैं ?

तो पहले हम timeline निकाल लेते हैं I देखिये, शत संवत के अनुसार १९४० चल रहा हैं अभी, इसी सन के अनुसार २०१८ चल रहा हैं अभी, विक्रम संवत के अनुसार अभी वर्त्तमान में २०७५ चल रहा हैं I और कलि संवत के अनुसार, कलि युग लगे हुए अभी ५११९ वर्ष हो गए हैं I यहाँ तक हमने समझ लिया I अब हुआ यह था, कि महाभारत के युद्द के बाद युधिस्ठिर जी का राज्याभिषेक होता है I उसका वर्णन हैं I युधिस्ठिर जी के राज्याभिषेक के ३६ वर्ष के बाद में मौसल युद्द का वर्णन हैं, मौसाल युद्द I और मौसल युद्द जो था, वोह गांधारी जी के श्राप के कारन हुआ था I गांधारी जी ने श्राप दिया था, भगवान् कृष्ण को कि तुम्हारे भी वंश का वैसे ही संहार होगा जैसे हमारे वंश का तुमने करवाया हैं I

तो उन्होंने भगवान् कृष्णा को श्राप दिया था, युधिस्ठिर जी के राज्याभिषेक के ३६ वे वर्ष में मौसल युद्द हुआ था, और जिसमे यदु वंश का पूरा संहार हो गया था I उसके बाद भगवान् कृष्ण ने अपने निज धाम में गमन किया था, अपनी लीला को विराम दिया था I तो जिस दिन भगवान् कृष्ण ने अपनी लीला को विराम दिया, उसी दिन से कलियुग का आना हम लोग मानते हैं, कलियुग का calculation का start हम मानते हैं, उस दिन से I भगवान्..वैसे तो कलियुग आ ही चुका था, महाभारत युद्द जो हैं वोह द्वापर और कलियुग के बीच का जो संधिकाल था उस समय लड़ा गया हैं वोह I और भगवान् कृष्ण ने यह बात कही है I जब दुर्योधन की जांघ पर प्रहार किया था, भीम ने और जांघ तोड़ दी थी, उसके बाद भगवान् बलभद्र कुपित हो गए थे I

तो भगवन बलभद्र को भगवन कृष्ण ने कहा था, कि आप कलियुग को आया हुआ समझ लीजिए अब I कलियुग आ चुका हैं I और भगवान् कृष्ण की लीला संवरण, यानी लीला समाप्त करने के दिन ही, दिन से ही हमलोग मानते हैं कि, कलियुग का आरम्भ हो गया था I

तो यह जो डेट हैं कलि संवत की, इसके ३६ वर्ष पूर्व, यानी भगवान् कृष्ण के लीला संवरण के बाद, उसके ३६ वर्ष पूर्व हम मानते हैं कि युधिस्ठिर जी का राज्याभिषेक हुआ था I ३६ वर्ष पूर्व I शास्त्र ऐसा कह रहा हैं I तो युधिस्ठिर जी का राज्याभिषेक जब होता हैं, आप सोच रहें होंगे, मैंने बताया ३६ लेकिन लिखा ३७ हैं ? वोह इसिलए हैं, कि हम ३६ वर्ष के बाद में मौसाल युद्द हुआ था, लेकिन उसके एक वर्ष बाद से हम लोग कलि संवत मानना आरम्भ करते हैं I तो इसमें हम ३६, ३७ को जोड़ देते हैं तो हमे ५१५६ वर्ष प्राप्त होते हैं, युधिस्ठिर संवत के I

भगवान् कृष्ण १२५ वर्ष रहें तो कलि संवत में अगर हम १२५ और जोड़ देतें हैं, तो हमे कृष्ण संवत्सरा प्राप्त हो जाता हैं I ठीक हैं ? तो, कृष्ण संवत्सर भी हम लिख देते हैं I तो यह हैं भगवन कृष्ण के अवतरण का दिन I कृष्ण संवत्सर आरम्भ होता है I अब इसवी सन से ३१०१ वर्ष पूर्व कलि संवत मानी गयी हैं I तो हम यह देखतें हैं कि ३१०१ वर्ष, और भगवान् शंकराचार्य का अवतरण, युधिस्ठिर संवत्सर के अनुसार २६२१ में हुआ I २६२१ युधिस्ठिर संवत के अनुसार, यानि युधिस्ठिर जी का संवत में जो होता हैं, उसके अनुसार २६३१ में भगवान् शंकराचार्य का अवतरण होता हैं I

तो २६३१ में भगवान् शंकराचार्य का अवतरण होता है I ३१०१ कलि संवत इसमें हमने ३७ वर्ष जोड़ दिए, युधिस्ठिर जी के राज्याभिषेक के, युधिस्ठिर संवत के अनुसार २६३१ वर्ष के बाद भगवान् शंकराचार्य जी का अवतरण होता हैं, तो हम जब इसमें से घटते हैं तो हमे मालूम पड़ता हैं कि इसवी सन की ५०७ वर्ष पूर्व भगवान् शंकराचार्य का अवतार सिद्द हैं I

और कृष्ण संवत्सर भी हैं हमारे पास में, युधिस्ठिर संवत्सर भी हैं, कलि संवत्सर भी हैं, विक्रम संवत भी हैं, तो हमे क्या आवश्यकता हैं अंग्रेजों के दिए हुए डेटिंग को मानने की ? हमारे पास में हमारी खुद की datings हैं I हमारे आचार्यों की गणना निकालने के लिए, हम अगर अंग्रेजों के ऊपर निर्भर हैं, तो यह तो बहुत गलत बात हैं I अच्छा फिर दूसरी बात, एक दूसरा प्रमाण आपके सामने रखना चाहता हूँ I भगवान् शंकराचार्य, मांडूक्य उपनिषद् के बारे में भाष्य लिखा हैं I मांडूक्य उपनिषद् के ऊपर भगवान् शंकराचार्य ने दुसरे श्लोक में जो बात कही गयी हैं कि, “सर्व अवयात ब्रह्म, परमात्मा ब्रह्म, स्वयं आत्मा चतुष्पात”, यह दूसरा मन्त्र हैं I

यह श्लोक कह लीजिये मांडूक्य उपनिषद् का, उसमे स्वयं आत्मा, चतुष्पात के ऊपर जो भगवान् शंकराचार्य ने भाष्य लिखा हैं, उसमे उन्होंने, “कौशार्पण वन वेति“ की उक्ति लिखी हैं I काशार्पण जो हैं, वोह मुद्रा थी, काशार्पण का अर्थ था मुद्रा I तो भगवान् शंकराचार्य कह रहें हैं कि आत्मा के चार अंश हैं, ठीक वैसे ही, जैसे काशार्पण के हैं I काशार्पण जैसे लोग कहतें हैं न, पुराने लोग कहतें हैं कि तुम १६ आने सही बात करते हो I १६ आने क्या थे? चार आना देखे भी थे जब हम छोटे थे I ४ आना, ८ आना, १२ आना, १६ आना I बस उसी प्रकार से भगवान् शंकराचार्य यह कहतें हैं यह चार में जो विभाग करा न, यह काशार्पण की जो बात, काशार्पण मुद्रा थी हमारे यहाँ पे I

भगवान् शंकराचार्य अपने भाष्य में, उस मुद्रा का उल्लेख कर रहें हैं I अब बिलकुल logical बात हैं, कि आप अगर आज कोई किताब लिखतें हैं, तो उसमे अगर भाष्य लिखें तो अप आज की समय की ही मुद्रा का उल्लेख करेंगे उसमे I आप उसमे आज से २००-३०० साल पहले की मुद्रा का उल्लेख तो नहीं करने वाले I तो भगवान् शंकराचार्य के समय पे काशार्पण मुद्रा चलन में थी I काशार्पण मुद्रा जो थी, वोह ६ शताब्दी और १४ शताब्दी में मान्य हैं I हमारे यहाँ के इतिहास में इसका वर्णन हैं I तो इससे भी यह सिद्द होता हैं कि भगवान् शंकराचार्य ने अपने भाष्य में काशार्पण मुद्रा का उल्लेख किया हैं, और वोह काशार्पण मुद्रा जो है, वो ६ और १४ शताब्दी तक चलन में थी, हम अगर देखतें हैं तो, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी पण का उल्लेख आता हैं I पण.. तो काशार्पण, ताम्बे के एक कर्ष को कार्षिक या काशार्पण कहतें थे I

तो उस काशार्पण मुद्रा का उल्लेख भगवान् शंकराचार्य ने example के रूप में रखा I किस चीज़ को define करने के लिए? आत्मा के विषय में बताया उन्होंने I वोह तो एक भाष्य हैं पूरा, विस्तृत भगवान् शंकराचार्य का, मांडूक्य उपनिषद् के अनुसार, तो इससे भी यह बात सिद्द हो जाती हैं के भगवान् शंकराचार्य जो हैं, उनका अवतरण काल जो हैं वोह ५०७ वर्ष पूर्व जो निकलता हैं युधिष्ठिर संवत के अनुसार, वोह बिलकुल ठीक हैं I Exact हैं, तो भगवान् शंकराचार्य का अवतरण काल जो हैं वोह २५० वर्ष का सिद्द होता हैं I तो इससे हमे यह बात समझ में आती हैं कि अंग्रेजोंकि दी हुए false theory को हमको मानने की कोई आवश्यकता नहीं हैं I हमारे आचार्य परंपरा जो हैं वोह अपने आप में इतनी सक्षम, सबल और प्रबल हैं कि वोह सभी तरीके की प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम और समर्थ हैं I

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